निगमीय व्यक्तित्व के लाभ और हानियां,सिद्धांत

 निगमीय व्यक्तित्व के लाभ

कंपनी का एक निगमिय व्यक्तित्व होता है जिससे व्यक्तित्व के कारण व्यवसाय में अन्य परेशानियां भी होती हैं और इससे तुलना में एक कंपनी को उनके लाभ प्राप्त होते हैं और इनकी प्रमुख निम्न तरीके से दी गई है—

1. विस्तृत वित्तीय साधन— किसी भी कंपनी को अधिक मूल्य कमाने के लिए उससे एक पत्र करने की सुविधा होती है और इनके तीन कारण भी होते हैं —( 1) सदस्यों की अधिकतम संख्या पर प्रतिबंध लगाना (2) विभिन्न प्रकार के अंश पत्रों व ऋण पत्रों का आदान प्रदान करना या निर्गमित करना इन तीन सुविधाओं के कारण विभिन्न आर्थिक स्थिति अपनी पूंजी को सुरक्षित रखने के लिए सावधान रखना पड़ता है जिससे कि वह कंपनी अपने अधिक मात्रा में पूंजी अर्जित कर सकें जिसके द्वारा उद्यमों को प्रोत्साहित करने के लिए वह अपने विपरीत साझेदारी संस्था में सदस्यों की संख्या सीमित किंतु दायित्व असीमित होने के कारण पूंजी की मात्रा सीमित रहती है।


2. स्थाई जीवन— कंपनी उत्तराधिकार वाली कृत्रिम व्यक्ति ही होती है जिसका जीवन आम व्यक्तियों के समान ही होता है और इनका जीवन स्थाई पूर्व होता है इसे हम इस तरह भी कर सकते हैं साझेदारी की तरह सदस्यों के पागल दिवालिया घोषित करके एवं उनकी मृत्यु हो जाती है अर्थात इससे यह साबित होता है कि सदस्यों संचालकों तथा प्रबंध के परिवर्तन के कारण कंपनी समाप्त नहीं होती बल्कि व्यक्ति का मृत्यु हो जाता है और अंश धारियों का आवागमन बराबर बना रहता है परंतु कंपनी यथावत कार्य करती ही रहती है कंपनी का यह गुण कंपनी की दीर्घकालीन अनुबंध कराने योग्य बन जाता है जिससे कंपनी और अधिक तेजी से लाभ कमाने लगती है और उन्हें फल स्वरुप कंपनी दीर्घकालीन योजनाएं बनाकर अधिक लाभ अर्जित करने के योग्य हो जाती है।


3. सीमित दायित्व— यह कंपनी धारियों का दायित्व उनके द्वारा ही क्रय किए गए अंश के अंकित मूल्य तक सीमित ही होती है और इससे यह भी कह सकते हैं कि इसका लाभ यह होता है कि थोड़ी आय वाले विनियोग भी कंपनी में अपनी पूंजी लगाने में कोई सनचोक नहीं करती है क्योंकि इसके फलस्वरूप कंपनी को अधिक मात्रा में पूंजी प्राप्त करने को भी मिलता है जिससे कि कंपनी और ज्यादा फायदे में रहती है।


4. कर संबंधित रतिया— आयकर अधिनियम के अंतर्गत यह माना जाता है कि एकाकी एवं साझेदारी आय की अपेक्षा उसकी कंपनी को कुछ विशेषताएं या नियम को पालन करना पड़ता है क्योंकि इसे विशेष रीति या भी प्रदान की जाती है जिसके कारण होता है।


5. कुशल प्रबंध होना— यह कंपनी के पास असीमित साधन होती है क्योंकि इसके फलस्वरूप कंपनी को योग्य कुशल एवं अनुभव करने को मिलता है या कंपनी अधिक लाभ उठाना सरल होता है इस कंपनी को क्योंकि इसके प्रबंध में कुशलता आ जाती है

6. आधुनिक उत्पादन विधियों का प्रयोग करना— अधिक पूंजी एवं बड़े पैमाने का उत्पादन होने के कारण कई कंपनी को आधुनिक यंत्रों तथा संयंत्रों का उपयोग करना पड़ता है इसे प्रयोग कर सकती है यह विवेक की करण को अधिक मात्रा तक अपना कार्य करती है।


7. जनता का विश्वास होना— कंपनी अधिनियम के अंतर्गत यह देखा जाता है कि यह प्रावधान है कि कंपनी के वार्षिक खाते को प्रकाशन किया जा रहा है इससे जनसाधारण का विश्वास बढ़ जाता है क्योंकि और कंपनी में विनियोग को प्रोत्साहित करने को मिलता है।


8. जोखिम का विभाजन— एक कंपनी के सदस्य की संख्या अत्याधिक होने के कारण उन्हें कम जोखिम उठाना पड़ता है क्योंकि कम व्यक्ति होने पर कम समस्या उत्पन्न होती है इसलिए कंपनी अधिक जोखिम पूर्ण कार्यों को करने में समर्थ होती है जबकि एकाकी एवं साझेदारी व्यापार के अंतर्गत जोखिम कार्यों को करना इतना अधिक सरल नहीं होता है।


9. अंश हस्तांतरण की सुविधा होना— इस कंपनी के अंश बाजार में अपनी इच्छा अनुसार खरीदे या बेचे जा सकते हैं यह कंपनी स्वतंत्रता पूर्वक अपना हस्तांतरण करती है क्योंकि यह सुविधा अन्य प्रकार की संस्थाओं में नहीं होता है इसलिए यह कंपनी स्वतंत्र होती है।


10. विनियोग सुविधाएं— जनसंख्या में छोटी-छोटी बचत को प्रोत्साहित करने के लिए यह कंपनी संगठन का प्रारूप बहुत ही लाभदायक बना देती है क्योंकि यह कंपनी चाहती है कि कंपनी के अंश को अधिकतम मूल्य कम हो क्योंकि इसी कारण छोटे विनियोग भी अपनी बचत को अंश अथवा श्रण पत्रों में विनियोग कर सके ऐसा सरल बनाती है।

निगमिय व्यक्तित्व की हानियां

निगमीय व्यक्तित्व हानियां निम्न तरीके से दी गई है—

1.निगमिय व्यक्तित्व के कारण यह कंपनी की पृथक वैधानिक अस्तित्व होती है यह कृत्रिम भी होती है एवं कृत्रिम व्यक्ति तो होने के कारण यह कंपनी के करो बार कुछ व्यक्तियों द्वारा एक समूह कि लाभ के लिए किया जाता है इसके कारण विधान द्वारा स्वतंत्र पृथक अस्तित्व प्राप्त भी हो जाता है यह कंपनी ऐसी व्यक्तियों का चयन करती है जो कंपनी को कोषो का उपयोग लाभ अर्जित करने के लिए ऐसे व्यक्तियों द्वारा अन्य कोषो का दुरुपयोग संभव करती है।


2.निगमिय व्यक्तित्व का निर्माण करने के लिए अनेक वैधानिक उपचार को पूरा करना पड़ता है जिसमे काफी समय लगता है सम्मेलन पूंजी  एवं व्यापार प्रारंभ अंश कंपनी के निर्माण की विभिन्न औपचारिकता के लिए औपचारिक पूरी करनी  होती है।


3. यह कंपनी के कार्य क्षेत्र की सीमा  नियम द्वारा निर्धारित होती है जिससे या बाहर कंपनी नहीं जा सकती है।


4. स्वामित्व एवं प्रबंध में पृथक के कारण अंश धारी लाभांश एवं नियमित प्राप्त होती है जिसके कारण कंपनी के वास्तविक प्रबंध में उनका कोई सरोकार नहीं होता है।


5. एक कंपनी का निर्माण के समय विभिन्न पत्र जैसे प्रर्साद सीमा नियम ,पर्साद अंतरनियम प्रविवरण आदि तैयार करना पड़ता है एवं रजिस्ट्रेशन शुल्क आदि काफी राशि व्यय करनी पड़ती है।


6.निगमिय व्यक्तित्व का एक ऐसा दोष भी होता है जो कि अंश धारी अपनी पूंजी बचत करने के लिए सरलता से नहीं करता है क्योंकि कंपनी द्वारा जब तक अंश अंश  का निर्णय नहीं लिया जाता है तब तक कोई भी अंश धारी अपनी कंपनी के अंश वापस लौटा कर अपनी राशि प्राप्त नहीं कर पाते हैं और यह अवश्य संभव है की अंश धारी अपनी आंसुओं का हस्तांतरण अन्य व्यक्ति के पक्ष में रख दे।

निगम का आवरण सिद्धांत

कंपनी के विधान के द्वारा निर्मित किए गए एक कृत्रिम व्यक्ति होता है जिसका परिणाम यह होता है कि उसका अंत कानून द्वारा ही किया जाता है और इससे हम यह भी कह सकते हैं कि व्यापार करने के लिए एक मनुष्य को जो अधिकार दिया जाता है उसे कानून के द्वारा ही दिया जाता है और कानून के द्वारा ही उसे जितने उत्तरदायित्व मानव पर होती है उतने ही अधिकार और उत्तरदायित्व कंपनी के भी होते हैं अंतर केवल इतना ही होता है कि खाने पीने एवं सोने की आवश्यकता नहीं होती है इसे हम अन्य शब्दों में भी देखेंगे कि मनुष्य का जन्म एक मरण प्राकृतिक रूप में होता है और कंपनी एक मानव के द्वारा ही जन्म होता है कंपनी कभी मर नहीं सकती है और विधान का ही नियंत्रण होता है ईश्वर का नहीं परंतु प्राकृतिक मनुष्य की भांति कंपनी दूसरों के साथ अनुबंध कर सकता है कोई भी कंपनी मनुष्य के सामान नहीं कर सकती जैसे की शादी और दूसरों के विरुद्ध वाद प्रस्तुत नहीं कर सकती परंतु मनुष्य यह सब कर सकता है जैसे कि संपत्ति का क्रय विक्रय एवं भौतिक व्यक्ति की भांति वह मारपीट ,हत्या ,शादी आदि कंपनी नहीं कर सकती है इसके साथ ही इस कृत्रिम व्यक्ति को जीवित रहने के लिए खाने पीने की आवश्यकता नहीं होती है इतना सब कुछ होने के पर भी यह जाली व्यक्ति नहीं है अभी तो एक वास्तविक व्यक्ति है इस प्रकार के सिद्धांत के अनुसार अक्सर देखा जाता है कि एक कंपनी को कानून द्वारा कृत्रिम अमूर्त अदृश्य एवं संपत्ति का क्रय विक्रय अनुबंध आदि प्रस्तुत किया जाता है क्योंकि हस्ताक्षर करने का अधिकार पृथक को ही होता है इसलिए यह भारत के उच्चतम न्यायालय में भूतपूर्व मुख्य न्यायाधीश भारत के भूतपूर्व उपराष्ट्रपति हिदाय तुल्ला खां इसने लिखा है की एक सम्मिलित कंपनी का पृथक अस्तित्व ही होता है तथा कानून इसे अपने सदस्यों से पृथक मनाता है ऐसे पृथक अस्तित्व सम्मेलन होते ही उत्पन्न हो जाता है अब इसे दूसरे शब्दों में देखते हैं की एक कंपनी का अस्तित्व उन लोगों से ही सदस्यों से जुड़ा रहता है जो इन्हें कंपनी की स्थापना करते हैं या कंपनी का शुरुआत करते हैं उसके अंश होते हैं इतना ही नहीं कंपनी एक कंपनी का रचना भी कर सकती है और पृथक पृथक अस्तित्व भी होता है यदि किसी कंपनी के लगभग सभी एक ही व्यक्ति के पास हो तो कोई समूह एक से अधिक कंपनियों का निर्माण करती है जैसे कि कंपनियों का प्रबंध संचालन एवं स्वामित्व उसी समूह के पास होती है जो सभी कंपनियों का सदस्यों का अस्तित्व पृथक ही बना रहता है इसे हम सरल शब्दों में देखते हैं कि कंपनी का अस्तित्व इसके सदस्यों से अलग होता है यदि कंपनी एक दूसरे के द्वारा कोई दावा करे तो एक कंपनी पर कोई दावा किया जाए तो इससे कंपनी के सदस्यों द्वारा यह कंपनी के सदस्यों पर चलाया हुआ दावा नहीं समझा जायेगा। और हम इसी को सम्मेलन का आवरण कहते हैं कई सारे कंपनी अपने सदस्यों से पृथक वैधानिक अस्तित्व को सम्मेलन में नाम सम्मेलन ऐड करती है सन 1897 ईसवी मैं हुआ था इस विवाद के सम्मेलन का नामकरण व्यक्तियों के द्वारा ही किया गया था जिससे व्यापार करता है अपने सम्मेलन ऐड कंपनी लिमिटेड की स्थापना की जिनमें से उन्हें वहां उसकी पुत्री तथा उसके चार पुत्र सदस्य थे और इसके पश्चात उन्हें सम्मेलन में अपना व्यापार कंपनी के लिए 30,000 से बेच दिया इस कंपनी के कई सारे अस्तित्व रहे होंगे जो इन्हें कंपनी का पृथक होता है वे पारिस्थितिक निम्न हैं— 


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