निजी या अलोक कंपनी का अर्थ एवं परिभाषा,लक्षण,विशेषताएं

 निजी या अलोक कंपनी का अर्थ एवं परिभाषा

निजी कंपनी से हम यह समझ सकते हैं कि ऐसी कंपनी जिससे कंपनी का अधिनियम 2013 के तहत सम्मिलित होती है जैसे कि सदस्य की संख्या में कम से कम 2 या उससे अधिक 200 होना चाहिए या अपने अंश एवं ऋण पत्रों को खरीदने के लिए यह जाने जाते है एवं उसे आमंत्रित नहीं करती है और इससे अंश के हस्तांतरण पर प्रतिबंध लगा दिया जाता है इसकी प्रदत पूंजी कम से कम 1 लाख या उससे अधिक हो सकती है इसके अतिरिक्त निजी कंपनियों अपने नाम के आगे प्राइवेट लिमिटेड शब्द का उपयोग करती है जिससे कि कंपनी अधिनियम 2013 के तहत धारा दो(68)के अनुसार निजी कंपनी से तात्पर्य ऐसी कंपनी से होता है जिसे  पूंजी कम से कम 1 लाख या उससे अधिक निर्धारित की गई राशि की है उसे अपने अंतर नियम द्वारा प्रयोग करती है। जैसे—

(I) अपने अंश यदि हो तो  अंतरण पर प्रतिबंध लगाती है।

(II) अपने सदस्य की संख्या 200 तक सीमित रखती है।


निजी कंपनी के लक्षण अथवा विशेषताएं

निजी कंपनी के महत्वपूर्ण विशेषताएं निम्नलिखित हैं—

1. न्यूनतम प्रदत अंश पूंजी— कंपनी अधिनियम 2013 के अनुसार एक निजी कंपनी के तहत कम से कम 1 लाख की राशि अंश पूंजी होनी चाहिए किंतु यह सरकार के द्वारा अंश पूंजी की इस न्यूनतम राशि को बढ़ाकर कोई नई राशि निर्धारित करती है तो निजी कंपनी में भी उतनी ही राशि अवश्य होनी ही चाहिए।


2. अंश अंतरण पर प्रतिबंध— किसी भी कंपनी को एक प्रमुख विशेषता यह होती है कि अपने अंश धारियों के अंश के अंतरण के अधिकार पर प्रतिबंध लगा देती है जिसके कारण एक निजी कंपनी के अंश धारी अपने अंश का अंतरण कभी कर ही नहीं सकते हैं।


3. सदस्यों की संख्या पर प्रतिबंध होना— एक निजी कंपनी की एक प्रमुख विशेषता यह भी होती है कि न्यूनतम एवं अधिकतम सदस्य की संख्या का उल्लेख कंपनी अधिनियम में किया गया होता है परंतु सदस्य की संख्या का प्रावधान उन निजी कंपनियों पर लागू होती है जिससे जो एक व्यक्ति कंपनी के रूप में पंजीकृत करवाई जाती है एक व्यक्ति कंपनी में तो न्यूनतम एवं अधिकतम सदस्य संख्या केवल एक ही रख पाता है। और किसी किसी कंपनी में तो सब एक सदस्य की संख्या अधिकतम 200 तक ही सीमित रखनी पड़ती है ।


4. अंश तथा पत्रों के लिए जनता को निमंत्रण देने पर निषेध— निजी कंपनी की तीसरी महत्वपूर्ण विशेषता यह होती है कि उससे निजी कंपनी के अंश तथा ऋण पत्रों के माध्यम से जाना जाता है और इससे आमंत्रित किसी को भी नहीं किया जा सकता है वास्तव में एक निजी कंपनी के निम्न स्रोत होते हैं जैसे

(I) अपने विद्यमान अंश धारियों को अधिकार अंश का निर्गमन करते हैं।

(II) बोनस अंश जारी करके।  

(III) निजी कंपनी में अधिकतम लोगों की संख्या 200 तक होती है जिससे यह देखा जाता है कि अंश का प्रस्ताव जारी करके ऐसे प्रस्ताव प्रत्येक वित्तीय वर्ष में 200 व्यक्तियों से अधिक तक पहुंचाया जाता है।


5. सार्वजनिक जमाओ पर निषेध होना— सार्वजनिक जमाव मतलब यह कि निजी कंपनियों पर भी विज्ञापन  द्वारा सार्वजनिक तरीके से स्वीकृत करके उनका नवीनीकरण करने पर भी निषेध दिया जाता है जिससे कि कंपनियों को अपने सदस्यों को संचालकों अथवा उनके संबंधित से ही जमाएं स्वीकृत कर सकती है।


6. प्रविवरण जारी ना करना— निजी कंपनी को पूरा विवरण जारी करने का अधिकार नहीं होता है।


7. नाम के साथ प्राइवेट लिमिटेड शब्द का उपयोग करना— निजी कंपनी को अपने नाम के साथ प्राइवेट लिमिटेड शब्द इसलिए जोड़ा जाता है कि यह शब्द संक्षिप्त रूप में इसे लिखे जा सकते हैं।


8. अंतर नियम— प्रत्येक निजी कंपनी को अपने स्वयं के अंतर नियम बनाने हे पढ़ते हैं क्योंकि इन्हें प्रत्येक निजी कंपनी को कुछ प्रतिबंध शामिल एवं सीमाएं निषेध करने में अनिवार्य रूप से सम्मिलित करने पड़ते हैं।


9. न्यूनतम संख्या में सदस्य होना— किसी भी निजी कंपनी अपने कर्मचारियों को कंपनी को छोड़कर सम्मेलन हेतु कम से कम 2 व्यक्तियों द्वारा सम्मिलित नियम पर हस्ताक्षर करने अनिवार्य ही होते हैं जिससे कि कंपनी को अपने सम्मेलन के उपरांत दोनों अभिदान ही कंपनी के प्रथम सदस्य बनाते हैं जिससे कि सम्मेलन करने से कंपनी को फायदा होता है और एक व्यक्ति कंपनी का वही अभी दाता ही अकेला सदस्य माना जाता है।

10. न्यूनतम एवं अधिकतम संचालक— प्रत्येक निजी कंपनी न्यूनतम दो ही संचालन होते हैं जिससे कि कंपनी को एक व्यक्ति कंपनी की दशा में न्यूनतम 1 संचालक होता है किंतु सभी प्रकार की निजी कंपनियों में अधिक से अधिक 15 संचालक रहने ही पढ़ते हैं।


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