सन् 1917 की रूस की क्रांति के प्रमुख कारण

San 1917 ki Rus ki Kranti ke Pramukh Karan;


1. जार का निरंकुश तथा अत्याचारी शासन- रूस का सम्राट जार कहलाता था उस समय निकोलस द्वितीय वहां का राजा था जो पूर्णता निरंकुश था और अपने पूर्ववर्ती शासकों के समान वह स्वेच्छाचारी था।


2. चर्च के अत्याचार- रूस के अधिकतर लोग ईसाई धर्म को मानने वाले थे पश्चिमी यूरोप में ईसाई धर्म की दो मुख्य विशेषताएं थी एक शाखा के लोग रोमन कैथोलिक और दूसरे शाखा के प्रोटेस्ट अट कहलाते थे। रूस में राज्य चर्च के बीच घनिष्ठ संबंध था। चर्च के खर्च के लिए जनता को अनेक अनिवार्य कर देने पड़ते थे।


3. नौकरशाही के अत्याचार- रूस में हजारों की संख्या में सरकारी कर्मचारी थे वह भ्रष्ट और निकम्मे थे वे जनता को लूटा करते थे और विलासिता का जीवन बिताते थे उनमें सेवा की भावना बिल्कुल नहीं थी।


4. आर्थिक दुर्दशा- रूस में अधिकतम जनसंख्या किसान थी लेकिन उनकी आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नहीं थी, खेती के साधन और तरीके पिछड़े हुए थे इसके अतिरिक्त उन्हें अनेक प्रकार के कर देने पड़ते थे।


5. सामंतों के अत्याचार- फ्रांस की तरह रूस में भी सामंती प्रथा प्रचलित थी भूमि के स्वामी बड़े-बड़े जागीरदार और जमींदार थे उन्हें राज्य में विशेष अधिकार प्राप्त है बड़े-बड़े सैनिक तथा असैनिक पद प्रय: उन्हीं को मिल सकते थे और वह किसानों को मनमानी लूटा करते थे।


6. कार्ल मार्क्स की विचारधारा- रूस की जनता दु:खी व पीड़ित थी इसलिए वहां अनेक क्रांतिकारी संगठन बन गए थे इन क्रांतिकारी संगठनों का उद्देश्य जार शाही तथा पुरानी सड़ी गली सामाजिक व्यवस्था को उखाड़ फेंकना था इसके साथ ही वे जर्मनी के प्रसिद्ध विचारक कार्ल मार्क्स को अपना गुरु मानते थे उनका उद्देश्य पूंजीवादी व्यवस्था को समाप्त करना और साम्यवाद की स्थापना करना था।


रूस की क्रांति के सफल होने के कारण

रूस में जो क्रांति हुई उसमें सफल होने का अहम भूमिका किसान और मजदूर वर्गों का था क्योंकि रूस की अधिकतम जनसंख्या किसान और मजदूर थे उन्हीं की बदौलत रूस की क्रांति सफल हुई।


1. जन क्रांति- जन यानी कि रूस की जनता, रूस की अधिकतम जनसंख्या किसान तथा मजदूर वर्ग के थे। और इन किसानों तथा मजदूर वर्गों ने एक क्रांति की जिसे जनक्रांति कहते हैं‌। रूस में क्रांति की सफल होने का एक प्रमुख कारण जनक्रांति भी थी क्योंकि यहां किसानों तथा मजदूरों की जनसंख्या 95% थी। जो रूस के शासक वर्ग के शोषण से बहुत अधिक परेशान थी इसलिए इसका विरोध करती थी।


2. क्रांति विरोधियों में मतभेद- क्रांति का विरोध करने वाले आपस में भी विरोधी थे उनमें मतभेद था दूसरी ओर क्रांतिकारी संगठित और एकजुट थे।


3. लाल सेना का गठन- टाॅटसकी ने क्रांतिकारियों को सैनिक के रूप में संगठित कर तैयार किया जिसे लाल सेना के नाम से जाना जाता है, इस लाल सेना ने क्रांति में सक्रिय रूप से भाग लेकर क्रांति को सफल बनाया।


4. दृढ़ निश्चय की भावना- लेनिन एक दृढ़ निश्चय व्यक्ति था उसने इस भावना को क्रांतिकारियों में भी जागृत किया जन समुदाय संगठित होकर अपने दृढ़ संकल्प से क्रांति को सफल बनाने में सफल हुआ।


5. निर्धनता- रूस की जनता युद्ध के खर्च से परेशान थी, लंबे युद्ध के कारण जनता में भुखमरी, बेरोजगारी और निर्धनता छा गई थी। सभी लोग परेशान थे क्रांति के विरोधियों ने युद्ध को जारी रखने की घोषणा कर दी लेकिन इसके विपरीत क्रांतिकारियों ने यह घोषणा कर दी कि हमको रोटी कपड़ा रोजगार और शांति चाहिए। क्रांतिकारियों की इस घोषणा ने जनता को अपनी ओर खींच लिया।


6. विश्व बंधुत्व- इस क्रांति के सिद्धांत विश्व बंधुत्व की भावना से ओतप्रोत थे वह किसी विशेष देश के लिए नहीं थे बोल्शेविक जिस व्यवस्था की स्थापना करना चाहते थे उसमें अखिल विश्व के किसानों और मजदूरों का हित छिपा हुआ था।


निष्कर्ष:

आज के इस लेख में हमने सन् 1917 की रूस की क्रांति के कारण और इसके सफल होने के कारणों के बारे में जाना। रूस में जब क्रांति हुई उस समय रूस का शासक निकोलस द्वितीय था, इस लेख में हमने जाना कि निकोलस रूस की जनता का अत्याचार करता था, वह निरंकुश व स्वेच्छाचारी शासक था। उस समय रूस के सम्राट को जार कहते थे।

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