पूर्ण प्रतियोगिता का आशय एवं परिभाषा, विशेषताएं

पूर्ण प्रतियोगिता का आशय

पूर्ण प्रतियोगिता से हम यह समझते हैं कि प्रतियोगिता के अंतर्गत क्रेता तथा विक्रेताओं में प्रतियोगिता होने के कारण संपूर्ण बाजार के मूल्य अधिक हो जाते हैं या मूल्य एक होने की प्रवृत्ति पाई जाती है।

प्रतियोगिता में क्रेता तथा विक्रेता स्वतंत्रता रूप से अपना कार्य करते हैं पूर्ण प्रतियोगिता में फर्म की संख्या अधिक होने के कारण प्रत्येक फर्म उद्योग में एक बहुत छोटा सा जगह रखी जाती है। जिससे कि वह बाजार अथवा उपयोग द्वारा निर्धारित कीमत को परिवर्तित कर सके पूर्ण प्रतियोगिता में कोई भी फार्म कीमत निर्धारित नहीं कर सकता है क्योंकि बाजार में उपयोग होने वाली पूर्ण दशाओं द्वारा जो कीमत निर्धारित होती है उसे उस उद्योग में कार्य प्रत्येक फार्म मान लिया जाता है।

पूर्ण प्रतियोगिता की परिभाषा

लिफ्ट विच के अनुसार- “बाजार की वह स्थिति जिसमें बहुत सी फार्म एक वस्तु बेचती है जिसके कारण इनमें से किसी भी एक फार्म की यह स्थिति नहीं होती है कि वह बाजार कीमत को प्रभावित कर सकें।”

श्रीमती जान रॉबिंस के अनुसार- “हम यह देख सकते हैं कि प्रतियोगिता तब पाई जाती है जब जिसमें प्रत्येक उत्पादक की उपज के लिए मांग पूर्ण लोचदार हो जाते हैं तब इसके दो अभिप्राय होते हैं पहला विक्रेता की संख्या बहुत अधिक होनी चाहिए दूसरा विभिन्न प्रतियोगी विक्रेताओं के बीच चुनाव करने के संबंध में समाज की दृष्टि से जिस बाजार पूर्व हो जाता है।”

विल्स के अनुसार हम यह देखते हैं कि बाजार की वह अवस्था जिसमें बहुत सी फर्म होती है और सभी फर्म एक समान वस्तु की उत्पादन कर रही होती है इस अवस्था में विक्रेता अपने फर्म की वस्तु को अधिक मूल्य बढ़ा देता है। इस प्रकार पूर्ण प्रतियोगिता को बाजार की एक ऐसी स्थिति माना जाता है जिसमें एक बड़ी संख्या में क्रेता एवं विक्रेता होते हैं एक समान वस्तु का उत्पादन कर क्रेता एवं विक्रेताओं को दोनों बाजारों का पूर्ण ज्ञान होता है फर्म के बाजार में प्रवेश करने एवं बाहर निकलने पर कोई पाबंदी नहीं लगाई गई है।

पूर्ण प्रतियोगिता की विशेषताएं

1. क्रेता एवं विक्रेता की अधिक संख्या हो जाना— पूर्ण प्रतियोगिता के अंतर्गत बाजार में क्रेता एवं विक्रेताओं का संख्या अधिक हो जाना प्रत्येक क्रेता की इच्छा कम खरीदना है और प्रत्येक विक्रेता इतना कम बेचता है कि ना कि कोई क्रेता और ना ही कोई विक्रेता बाजार में प्रचलित कीमत को प्रभावित करने की स्थिति में होता है।

2. बाजार की पूर्ण जानकारी— पूर्ण प्रतियोगिता में  विक्रेता को बाजार की पूर्ण जानकारी होती है प्रत्येक वस्तु के संबंध में सभी बातों को सभी क्रेता पहले से ही जानने अथवा फार्म को प्रचार एवं विज्ञापन पर बेचने की आवश्यकता नहीं पड़ती है।

3. कृत्रिम प्रतिबंधों का अभाव होना— प्रतियोगिता के एक ही विशेषता होती है कि बाजार में वस्तु तथा उत्पादन के साधन की मांग पूर्ति तथा कीमत के ऊपर निर्भर रहती है किसी भी प्रकार की कृत्रिम प्रबंधन नहीं होती है।

4. एक फार्म का स्वतंत्र प्रवेश तथा बहिर्गमन— पूर्ण प्रतियोगिता में उद्योग के अंतर्गत फर्म का आगमन एवं बहिर्गमन स्वतंत्रता रूप से किया जाता है दूसरे शब्दों में हम देखेंगे कि कोई भी फर्म जब चाहे उद्योग से अलग हो जा सकता है तब तक भी कोई फार्म उद्योग मैं आना चाहे आ सकता है।

5. उत्पादन साधनों की पूर्ण गतिशीलता होना— पूर्ण प्रतियोगिता का स्वतंत्रता पूर्वक कार्यशील बनाए रखने के लिए उत्पादन के साधनों की पूर्ण गतिविधि की आवश्यकता होती है उत्पादन के साधन जिस उद्योग का उपयोग लाभ के लिए करते हैं उसमें पूर्ण रूप से स्वतंत्र होती है।

6. वस्तु का समरूप अधिक होना— पूर्ण रूप से प्रतियोगिता बाजार की विशेषता यह होती है कि विभिन्न विक्रेताओं द्वारा बेची जाने वाली वस्तु क्रेताओं की दृष्टि से संपूर्ण  होनी चाहिए जिससे कि बेची जाने वाली वस्तु क्रेताओं की दृष्टि से एक दूसरे के पूर्ण स्थान पर होना अति आवश्यक है जहां पर वस्तु की कीमत घट जाती है तो वहां वस्तु की मांग कीमत बढ़ जाती है

7. परिवहन लागतें नहीं होनी चाहिए— पूर्णस्पर्धा बाजार का विश्लेषण इस अधिकार से किया जाता है कि उसमें परिवहन संबंधित लागत नहीं होती है यह बाजार इस मान्यता पर आधारित होती है कि प्रश्न ही प्रश्न उठाई जा सके पूर्ण प्रतियोगिता को एक कोरी या सादा कल्पना भी कहा जाता है इसका वास्तविक जीवन से कोई संबंध नहीं होता है।

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