बाजार का आशय एवं परिभाषा
साधारण बोलचाल की भाषा में हम बाजार का तात्पर्य उस स्थान या विशेष से है जहां क्रेता और विक्रेता वस्तुओं की खरीदने और बेचने के लिए मिलते हैं और इस स्थान एक महत्व हो सकता है या एक मकान लेकर अर्थशास्त्र में बाजार का इससे विभिन्न है अर्थशास्त्र में बाजार का शब्द इस प्रकार है कि किसी विशेष स्थान से नहीं है बल्कि एक ऐसी क्षेत्र से है जहां किसी वस्तु की सारे बाजार में एक ही कीमत प्रचलित होने की प्रवृत्ति पाई जाती है वर्तमान वैज्ञानिक युग में क्रेता अपने घर पर रहते हैं वह विश्व के किसी भी कोने में विक्रेता से वस्तु का क्रय विक्रय कर सकता है अर्थशास्त्र में बाजार का विस्तृत अर्थ लिया जाता है इसके अनुसार किसी स्थान विशेष पर क्रेता एवं विक्रेता की उपस्थिति आवश्यक नहीं होती है यह लोग डाक तार द्वारा भी संपर्क स्थापित कर सकते हैं।
बेन्हम के अनुसार बाजार वह क्षेत्र है जिसमें क्रेता और विक्रेता प्रत्यक्ष या दुकानदारों के इतने निकट संपर्क में बाजार के एक भाग में प्रचलित मूल्य अन्य भागों में प्रचलित मूल्यों को प्रभावित करें।
जे.सी. एडवर्ड्स के अनुसार बाजार व पद्धति है जिसके द्वारा विक्रेता एक दूसरे से संपर्क करते हैं इसके लिए एक निश्चित स्थान का होना आवश्यक नहीं है
ऐली के अनुसार बाजार का आशय उस सम्मानीय क्षेत्र से होता है जिसमें किसी विशेष वस्तु का मूल्य निर्धारित करने वाली शक्तियां स्वतंत्र रूप से कार्य करती है।
जे.के .मेहता के अनुसार बाजार शब्द से आशय उस स्थिति से होता है जिसमें एक वस्तु की मांग उस स्थान पर हो जहां उसे बेचने के लिए प्रस्तुत किया जाये।
बाजार की विशेषताएं
बाजार की प्रमुख विशेषताएं को निम्न प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है—
1. संपूर्ण क्षेत्र— बाजार से आशय किसी विशेष स्थान से नहीं है और यह कुल क्षेत्र से होता है जिसमें क्रेता एवं विक्रेता फैले हों।
2. क्रेता और विक्रेता— क्रेता एवं विक्रेता यह दोनों ही बाजार के आवश्यक अंग होते हैं क्योंकि किसी एक के ना होने पर भी नियम कार्य नहीं हो सकते और बिना विनियम कार्य के बाजार को संभालना मुश्किल होता है।
3. एक विशेष किस्म की वस्तु— हमसे दूसरा बाजार के लिए एक विशेष वस्तु का होना आवश्यक होता है जिसमें कि क्रय विक्रय किया जाता है जितनी वस्तु उतने बाजार होते हैं जैसे लिपटना चाहे वह बुक ,चाय, के अलग-अलग बाजार होंगे।
4. प्रतियोगिता— बाजार में क्रेता एवं विक्रेता के मध्य स्वतंत्रता प्रतियोगिता होनी चाहिए क्योंकि क्रेता वस्तु को कम कीमत पर खरीदना चाहता है विक्रेता ऊंची कीमत पर बेचना चाहेगा इस लेनदेन के समय किसी प्रकार का प्रतिबंध या दबाव नहीं होना चाहिए।
5. एक मूल्य— बाजार के लिए उसी वस्तु का मूल्य उसके विभिन्न भागों में समान होना आवश्यक है स्मरण रहे कि पूर्ण प्रतियोगिता को बाजार का अनिवार्य तत्व नहीं माना जा सकता है क्योंकि आजकल आप पूर्ण प्रतियोगिता ही प्रचलित स्थिति है जिसे हम पूर्ण प्रतियोगिता नहीं कह सकता।
Comments
Post a Comment
Hello, दोस्तों Nayadost पर आप सभी का स्वागत है, मेरा नाम किशोर है, और मैं एक Private Teacher हूं। इस website को शौक पूरा करने व समाज सेवक के रूप में सुरु किया था, जिससे जरूरतमंद लोगों को उनके प्रश्नों के अनुसार उत्तर मिल सके, क्योंकि मुझे लोगों को समझाना और समाज सेवा करना अच्छा लगता है।