बड़े पैमाने के उत्पादन से आशय, लाभ

बड़े पैमाने के उत्पादन का आशय

आधुनिक युग बड़े पैमाने पर उत्पादन करने का युग माना जाता है आजकल बड़े बड़े पैमाने वाली इकाइयों की स्थापन करने की प्रवृत्ति निरंतर बढ़ती जा रही है जब एक फर्म में उत्पन्न साधनों कि बड़े पैमाने में मात्राओं का प्रयोग किया जाता है तो यह बड़े पैमाने का उत्पादन कहलाता है इस प्रकार जब किसी उद्योग में उत्पादन के साधनों की अधिक मात्रा में प्रयोग करके उद्योग के आकार में विस्तृत उत्पन्न किया जाता है तो उसे बड़े पैमाने का उत्पादन कहां जाता है यदि किसी उद्योग विशेष में उत्पन्न इकाइयों की संख्या में वृद्धि हो जाती है तो फल स्वरुप उस आकार बड़ा हो जाता है तो उससे भी बड़े पैमाने का उत्पादन कर सकते हैं अतः बड़े पैमाने का उत्पादन व्यवस्था का तात्पर्य उद्योग या उत्पादन इकाइयों के आकार में विस्तृत करने से होता है।

बड़े पैमाने की उत्पत्ति की बचतें या लाभ

बड़े पैमाने पर वस्तु का उत्पादन करने से एक फर्म को उनके प्रभाव की लाभ प्राप्त होती है प्रारंभ में फर्म को वर्तमान प्रतिफल प्राप्त करने के अवसर मिल जाता है जिसके फलस्वरूप फर्म का अवसर प्रदान बढ़ता जाता है तथा औसत लागत कम हो जाता है जिससे सम्मानितया बड़े पैमाने की बचत क्या लाभ को दो भागों में रखा जा सकता है।

1. आंतरिक बचत— आंतरिक बचत से हम यह समझते हैं कि एक फर्म कारखाने को अन्य फर्मों की गतिविधियों से स्वतंत्र रहकर प्राप्त होती है यह फार्म द्वारा उत्पादन के पैमाने में वृद्धि करने के परिणाम स्वरूप प्राप्त होती है तथा इसको तब तक प्राप्त नहीं किया जा सकता जब तक उत्पादन में वृद्धि नहीं हो जाती है कुछ महत्वपूर्ण आंतरिक बचत को निम्न प्रकार में बांट दिया गया है—

1. तकनीकी बचत— तकनीकी बचत उत्पादन की उत्तम तकनीक बड़ी मशीनों के प्रयोग विशिष्ट करण तथा श्रम विभाजन के प्रयोग के लाभ स्वरूप प्राप्त होता है इस प्रकार की बचत को निम्न तरीकों से प्राप्त किया जा सकता है–

(I) उत्पादन अवस्था —किसी फर्म या उत्पादक इकाई विस्तार होने पर बड़े मशीन का प्रयोग संभव हो पाता है इन मशीन के द्वारा कम व्यय पर अधिक मात्रा में वस्तुओं का उत्पादन किया जा सकता है अतः छोटे मशीनों के स्तर पर बड़ी मशीनों के प्रयोग हो सकते हैं।

(II) उत्तम तकनीक का प्रयोग करके— एक फर्म के आकार में विस्तार होने पर वह उत्तम तकनीक का प्रयोग कर सकती हैं इस प्रकार की तकनीकी अधिक खर्चीली होने के कारण इसका प्रयोग छोटे फार्म द्वारा नहीं किया जा सकता परंतु बड़े पैमाने में इसका प्रयोग बहुत ज्यादा होता है इकाई लागत को कम कर सकती है।

(III) विशिष्टकरण में वृद्धि करके—एक फार्म की विशिष्ट करण या श्रम विभाजन के लाभ उस समय ही प्राप्त हो सकते हैं जब वह अपने आकार में वृद्धि करती है श्रमिकों को अधिक संख्या में उत्पादन प्रक्रिया में लगाया जाएगा अपने विशिष्ट क्रियाओं को संपन्न कर सकेंगे।

2. प्रबंध की बचत— बड़े पैमाने पर उत्पादन करने पर फर्म अपने प्रबंध की कुशलता में वृद्धि करके प्रबंध संबंध अनेक बचत प्राप्त कर शक्ति है यदि एक कुशल प्रबंध द्वारा श्रमिकों को उनकी योग्यता के अनुसार कम किया जाता है तो उसे श्रमिकों की उत्पादकता में वृद्धि हो जाती है।

3. वाणिज्य बचत— यह बचत कच्चे माल की खरीदी दारी और तैयार माल की बिक्री में उत्पन्न होती है बड़ी फर्म कि सौदा करने की शक्ति अधिक होती है यह रेलवे और सड़क परिवहन से भाड़े में रियायत लेते हैं माल की डिलीवरी शीघ्र एवं नियमित से प्राप्त करने तथा बैंकों से सस्ती शाख प्राप्त करने में असमर्थ होती है एक बड़ी फर्म और उस माल का क्रय विक्रय कर लेते हैं जबकि बाजार की दशाएं उसके अनुकूल हो जाते हैं वह अपने माल की विपणन लागतो में कटौती कर सकती है माल की साफ करने के लिए निजी यातायात की व्यवस्था कर सकती है इन सभी उपाय से फार्म का लाभ बढ़ जाता है।

4. वित्तीय बचत— एक बड़ी फर्म को अधिक मात्रा में पूंजी एवं शाख की सुविधाएं भी प्राप्त होती है यह वित्तीय संस्थानों से कम ब्याज पर अधिक मात्रा में पूंजी उधार ले सकती है बड़ी मात्रा में पूंजी लगाकर वह अपने पैमाने में विधि कर सकती है।

2. बाह्य बचत— बाह्य मित व्यवस्थाएं वे होते हैं जो अनेक फार्म या उद्योगों को प्राप्त देती है जबकि एक उद्योग में या उद्योगों के समूह में उत्पादन का पैमाना बढ़ता जाता है कुछ महत्वपूर्ण बाह्य मित व्यवस्थाएं का वर्णन निम्न प्रकार से किया गया है— 

1. केंद्रीय करण की बचत— एक ही प्रकार के उद्योग की अनेक उत्पादन इकाइयों का एक ही स्थान या केंद्रीय होने से उनको सामूहिक रूप से कुशल श्रम सत्ता परिवहन तथा साख की सुविधा आदि प्राप्त होती है।

2. सूचना संबंधित बचत— एक उद्योग के विकसित होने पर उद्योग की विभिन्न फर्म मिलकर अनेक व्यापारिक एवं तकनीकी पत्रिकाओं का प्रशासन कर सकते हैं जिसका लाभ उद्योग की प्रत्येक फार्म को मिलता है इसी प्रकार फर्म सम्मिलित रूप से उद्योग संबंधित अनुसंधान संस्थान भी बनाती है।

3. विशिष्टीकरण की बचत— उद्योग का समुचित विकास होने पर फर्म उत्पादन की अनेक प्रक्रियाओं को पूरा करने के लिए जगह पर केवल विशिष्ट प्रक्रिया में ही विशिष्टीकरण कर लेते हैं।

4. नियोजन की बचत— किसी उद्योग का विकास होने पर संभव हो जाता है कि उसकी कुछ प्रक्रियाओं को टुकड़ों में बांट कर उन्हें विशेषज्ञ फर्म द्वारा समापन किया जाए।

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