उत्पादन का अर्थ,परिभाषा,कारक, महत्व

उत्पादन का अर्थ

उत्पादन का अर्थ भौतिक वस्तु एवं पदार्थ के निर्माण में लिया जाता है किंतु अर्थशास्त्र में यह मान्यता यह है कि मनुष्य ना तो किसी वस्तु या पदार्थ का निर्माण कर सकता है और ना ही उसे नष्ट कर सकता है तो यह दोनों कार्य प्रकृति के ही होते हैं यह अधिक से अधिक उसके स्वरूप में परिवर्तन कर उसकी उपयोगिता में वृद्धि कर सकते हैं जैसे कि हम यह देख सकते हैं कि लकड़ी ,पत्थर ,मिट्टी आदि का निर्माण प्रकृति के द्वारा ही किया गया है और इसे  शिल्पकार या कुम्हार इसे अपने स्वरूप में परिवर्तित करके या इसे बनाकर बाजारों में बेचने में अधिक मात्रा लगाकर इसे बेचा जाता है इससे उत्पादन कहा जा सकता है।

आर्थिक शब्दों में उत्पादन का आशय किसी वस्तु के उपयोगिता में की जाने वाली विधि से है जिससे उस वस्तु का मूल्य बढ़ जाता है।

उत्पादन की परिभाषा

जीड के शब्दों में- “उत्पादन का अनिवार्य तत्व पदार्थ का निर्माण नहीं है बल्कि इसके मूल्य में अभिवृद्धि मात्र है।”

प्रो. पेंशन के अनुसार- “वस्तु में मानवीय आवश्यकताओं को प्राप्त करने की योग्यता शक्ति अथवा गुण में वृद्धि करना उत्पादन है।”

प्रो.एली के शब्दों में- “आर्थिक दृष्टिकोण का सृजन ही उत्पादन है।”

उपयुक्त परिभाषा उसके आधार पर हम यह जान सकते हैं कि वस्तु के मूल्य पर निर्माण अथवा विनियम में वृद्धि से उसके उपयोगिता तथा मूल्य में वृद्धि को उत्पादन कहा जा सकता है।

उपयोगिता के सृजन की रिक्तियां

किसी वस्तु या पदार्थ के निम्न अनुसार परिवर्तन कर उसके मूल्य एवं दृष्टिकोण उपयोगिता में विधि की जाती है—

1. रूप परिवर्तन करके— इसमें वस्तु के आकार प्रकार रूप रंग में परिवर्तन कर उसकी उपयोगिता तुष्टिगुण मैं विधि की जाती है जैसे कि बढ़ई द्वारा लकड़ी से फर्नीचर का निर्माण करता है और कुम्हार द्वारा मिट्टी के बर्तन का निर्माण में परिवर्तित करता है उत्पादन कहा जाता है उत्पादन की यह विधि से अधिक व्यापक एवं महत्वपूर्ण है।

2. स्थान परिवर्तन— जब कोई वस्तु किसी स्थान पर प्रचुर मात्रा में उपलब्ध हो तो उसका मूल्य उस स्थान पर कम होता है किंतु यदि उसे किसी दुर्लभ स्थान पर ले जाया जाए तो उसकी उपयोगिता सबसे अधिक बढ़ जाएगी स्थान परिवर्तन द्वारा उत्पादन कहा जाता है जैसे की नदी के किनारे रेत की उपयोगिता कम होती है किंतु यदि उसे किसी शहर के भवन निर्माण स्थल पर ले जाया जाए तो उसकी मात्रा उपयोगिता एवं मूल्य बढ़ जाती है।

3. समय में परिवर्तन— कुछ वस्तुओं का उपयोगिता कुछ समय के लिए बढ़ जाती  है जैसे की पुरानी शराब पुराने चावल आदि इसे समय पर परिवर्तन द्वारा उत्पन्न कहा जाता है।

4. अधिकार में परिवर्तन— यदि किसी वस्तु के अधिकार में परिवर्तन से उसकी उपयोगिता एवं मूल्य में वृद्धि हो तो उसे अधिकार में परिवर्तन से उत्पादन कहा जाता है जैसे कि पुस्तक विक्रेता के पास पुस्तकों की उपयोगिता अधिक नहीं होती है किंतु विद्यार्थी के अधिकार में आने पर उसकी उपयोगिता बढ़ जाती है।

5. ज्ञान में वृद्धि— व्यक्ति के ज्ञान में वृद्धि उपयोगिता का सृजन ज्ञान में वृद्धि उत्पादन कहलाता है जैसे कि विज्ञापन एवं विचार में किसी वस्तु की जानकारी प्रदान कर उसकी उपयोगिता एवं मूल्य में वृद्धि करते हैं।

6. सेवा उपयोगिता— जब किसी व्यक्ति की सेवाओं में गुण में वृद्धि हो तो इससे सेवा उत्पादन का जाता है जैसे कि डॉक्टर, वकील, इंजीनियर ,अकाउंटेंट की सेवाएं।

उत्पादन के कारक या साधन

उत्पादन के कारक का वर्गीकरण

1. प्रारंभिक वर्गीकरण— प्रतिष्ठित अर्थशास्त्रियों उत्पादन के साधनों को निम्न तीन भागों में वर्गीकृत स्पष्ट किया गया है
(1)भूमि (2) श्रम एवं (3)पूंजी।

भूमि उत्पादन का प्रारंभिक एवं आधारभूत  निष्क्रिय साधन है जिससे किसी भी प्रकार का उत्पादन संभव नहीं होता है भूमि पर उत्पादन के लिए श्रम की आवश्यकता होती है श्रम उत्पादन का दूसरा सक्रिय साधन है पूंजी यह दोनों साधनों के आधार समस्या स्थापित करती है क्योंकि पूंजी के अभाव में सही ढंग से उत्पादन संभव नहीं है अतः पूंजी उत्पादन का तीसरा साधन है।

2. मार्शल द्वारा वर्गीकरण— मार्शल के उत्पादन में निम्न चार साधन बताए गए हैं (1)भूमि (2) श्रम (3) पूंजी एवं (4) संगठन

मार्शल ने भूमि,श्रम एवं पूंजी के आधार पर तालमेल बैठने तथा भूमि ,श्रम एवं पूंजी की उचित मात्रा में उचित अनुपात में निकालकर उत्पादन करने के लिए संगठन की आवश्यकता पर बल दिया साथ ही उत्पादन के प्रत्येक कार्य में भावी हानि एवं जोखिम की सुरक्षा के लिए साहस को साधन के रूप में मान्यता प्रदान किए।

3. आधुनिक वर्गीकरण— आधुनिक अर्थशास्त्रियों ने उत्पादन की साधनों को निम्न दो भागों में बांट दिया गया है (1)विशिष्ट साधन (2) अविशिष्ट साधन

उत्पादन के साधन जिसका उपयोग केवल एक ही कार्य में हो विशिष्ट साधन कहलाते हैं जैसे रेल की पटरी रेल इंजन आदि

4. नवीन वर्गीकरण— वर्तमान अर्थशास्त्रियों ने उत्पादन के साधनों को निम्न दो भागों में वर्गीकृत किया है (1) मानव पूंजी साधन (2) गैर मानव पूंजी साधन

मानव कौन से साधन में जनसंख्या का आकार एवं उनकी योग्यताओं को सम्मिलित किया जाता है तथा गैर मानव पूंजी साधन का पुनः दो भागों में विभाजित किया जाता है (1) प्रकृति पूंजी साधन जैसे भूमि ,वन, खनिज आदि तथा(2) मानव निर्मित पूंजी साधन जैसे मशीनरी प्लांट आदि।

निष्कर्ष— अधिकांश अर्थशास्त्रियों का यह मत है कि उत्पादन के केवल 5 साधन है भूमि ,श्रम, पूंजी ,संगठन एवं साहस विशिष्ट एवं अविशिष्ट रूप में साधना का वर्गीकरण केवल अल्पकालीन के लिए उपयोगी है तथा मानव पूंजी साधन एवं गैर मानव पूंजी साधन की अधिक विश्वसनीय नहीं है यह वर्गीकरण भी वर्णनात्मक है उत्पादित के भूमि ,श्रम ,पूंजी, संगठन एवं साहस को ही साधन मत मानना अधिक उचित होगा।

उत्पादन का महत्व

1. व्यक्तिगत दृष्टि से महत्व — व्यक्ति की आर्थिक स्थिति से आपके धन उत्पादन पर निर्भर करती है कि धान के उत्पादन से वह अपनी आवश्यकताओं को संतुष्ट कर अपने जीवन यापन के लिए विधि कर पाता है साथी आई में विधि से अपनी आवश्यकताओं में सुधार कर अपनी कार्यक्षमता में वृद्धि कर पाता है।

2. सामाजिक दृष्टि से महत्व— आर्थिक एवं सामाजिक समस्याओं का समाधान उत्पादन का मात्रा पर निर्भर करती है किस सामाजिक दृष्टि से गरीबी बेरोजगारी आदि समस्याओं का हल उत्पादन मात्रा में पर्याप्त वृद्धि पर ही संभव होता है।

3. राष्ट्रीय दृष्टि से महत्व— राष्ट्रीय दृष्टि से हम यह जान सकते हैं कि राष्ट्रीय की आर्थिक समृद्धि उसके उत्पादन की प्रकृति एवं संभव पर निर्भर करती है उत्पादन में वृद्धि के नए-नए तरीके एवं विधियों से राष्ट्रीय समृद्धि शाली होती है साथ ही इससे व्यापार एवं उद्योग को बढ़ावा प्राप्त होता है जिससे के राज्यश्व में वृद्धि के साथ साथ ही निर्माण को बढ़ावा मिल सके।

4. अंतर्राष्ट्रीय दृष्टि से महत्व— उत्पादन में वृद्धि से विश्व के विभिन्न राष्ट्रीय के मध्य आर्थिक सहयोग की भावना विकसित होती है साथ एक राष्ट्रीय के उत्पादन स्तर एवं विधियों का प्रभाव अन्य राशियों के उत्पादन स्तर एवं विधियों पर पड़ता है।

 5.राजनीतिक दृष्टि से महत्व— राजनैतिक दृष्टि से हम यह जान सकते हैं कि यह प्रजातांत्रिक अर्थव्यवस्था में कोई भी राजनीतिक दल तभी सफल हो पाता है जब वह देश के अधिकांश व्यक्तियों के लिए रोजगार की व्यवस्था करने में सफल हो पाता है रोजगार में वृद्धि उत्पादन पद्धति पर निर्भर करती है।



Comments