समोत्पाद वक्र से आशय
समोत्पाद वक्र को अंग्रेजी में ‘Iso-pruduct curve’ या ‘Iso-quant curve’ या Equal pruduct curve के नाम से जाना जाता है और अंग्रेजी में इसे Iso शब्द की उत्पत्ति यूनानी भाषा के ऐसे विभिन्न सहयोग को बताता है कि जिस में उत्पादक वस्तु की समान मात्रा में उत्पादित कर सकें दूसरे शब्दों में हम देख सकते हैं कि समोत्पाद के समूह उत्पादन साधनों के विभिन्न सहयोग बिंदुओं का वह मार्ग है जिसके द्वारा उत्पत्ति वस्तुओं की कुल मात्रा समान होती है इस वक्र की प्रत्येक बिंदु पर उत्पादन की समान मात्रा व्यक्त की जाती है।
समोत्पाद वक्र की परिभाषा
फर्ग्यूसन के अनुसार - “उत्पादक वह वक्र हैं जिसके साधनों के उन सभी संभावित सहयोग को प्रकट करता है जो उत्पादन के एक निश्चित स्तर को उत्पादित करने के लिए भौतिक रूप से समर्थक होते हैं।”
कोहन के अनुसार - “एक सम उत्पादक वक्र वह वक्र है जिस पर उत्पादन की अधिकतम प्राप्त योग्य दर स्थित होती है।”
प्रो. बीरस्टेड के अनुसार - “सम उत्पाद रेखा दो साधनों में उन समस्त संभावित सहयोग को बताते है जिसमें समान कुल उत्पादन प्राप्त होता है।”
पीटरसन के अनुसार - “सम उत्पाद वक्र उत्पादन के समय उत्पादन के लिए समान उत्पादक वर्क रहे हैं जिनमें उत्पादन उदासीनता वक्र या उत्पादन का तटस्थाता वक्र विश्लेषण भी कहते हैं क्योंकि जिस प्रकार उदासीनता वक्र किसी उपभोक्ता के लिए दो वस्तुओं के बीच सहयोग को प्रकट करता है जिससे उपभोक्ता को समान संतुष्टि मिलती है उसी प्रकार सम उत्पत्ति रेखा भी उत्पादन के साधनों के उन विभिन्न वैकल्पिक सहयोग उनको बताती है जिसमें समान कुल उत्पादन प्राप्त होती है।”
समोत्पाद वक्र की विशेषताएं
समोत्पाद वक्र की निम्नलिखित विशेषताएं महत्वपूर्ण मानी जाती है—
1.समोत्पाद वक्र का ढालन ऊपर और नीचे की ओर होते हैं— यदि ऐसा ना हो तो अनेक असंगत बातें उपस्थित हो जाती हैं ऊपर चढ़ता वक्र वह बताते हैं कि उत्पादन के दोनों साथ में जैसे श्रम और पूंजी को बढ़ाने से कुल उत्पादन की उतनी ही मात्रा प्राप्त होती है यह एक असंगत धारण बन जाता है।
2. एक उस वक्त अधिक उत्पादन का प्रतीक है— सम उत्पादन वक्र जिनकी एक दूसरे से ऊपर होती है उतनी ही उत्पादन की अधिक मात्रा को प्रकट करती है क्योंकि एक ऊंचे वक्र के लिए दोनों साधनों की अधिक इकाइयां उपयोग में आती है।
3. दो समोत्पाद वक्र का परस्पर एक दूसरे को नहीं काट सकते है— ऊंचा वक्र अधिक उत्पादन को बताता है तथा नीचे कम उत्पादन को बताता है अतः किसी भी दशा में दो समोत्पाद वक्र एक दूसरे को नहीं काट सकते क्योंकि ऐसा होना असंगत है।
4. दो समोत्पाद वक्र परस्पर समांतर होनी जरूरी नहीं है— इसका प्रमुख कारण यह भी है कि दो साधनों की स्थानापन्नता की दर आवश्यक रूप से समान नहीं होता है।
5. प्रत्येक समोत्पाद वक्र अमूल्य बिंदु के प्रति उन्नतोदर होता है— क्योंकि ऐसा होने पर ही वह सिद्ध करेगा कि एक साधन की मात्रा बढ़ाने पर दूसरे साधन का सीमांत महत्व कम होता जाता है पूंजी की मात्रा वृद्धि करने पर श्रम का सीमांत महत्व कम होना अनिवार्य है।
6. कई समोत्पाद वक्र दोनों में से किसी भी अक्ष को स्पर्श नहीं कर सकते— ऐसा इसलिए नहीं होता क्योंकि एक अक्षय को स्पर्श करने का अर्थ उसे संबंधित साधन का शून्य उपयोग होगा यह शाम उत्पादक वक्र की घोषणा के विरुद्ध बात है साधनों का संयोग इसके अंतर्गत अनिवार्य है।
7. साधनों के प्रतीस्थापन का ज्ञान— उत्पाद वक्र की वक्रता के सहायता से यह ज्ञात होता है कि साधनों को एक दूसरे से कितना प्रतिस्थापित कर सकते हैं पूर्ण स्थापन साधनों सम उत्पाद वक्र एक सरल रेखा होगी तथा पूरक साधनों के सम उत्पाद वक्र का आकार समकोण वाला होता है
Ankesh ahirwar
ReplyDeleteB a fast year
ReplyDeleteThank you
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