उत्पत्ति ह्रास नियम के लागू होने वाले कारक, सीमाएं , क्षेत्र

 उत्पत्ति ह्रास नियम के लागू होने वाले कारक

आधुनिक अर्थशास्त्री उत्पत्ति ह्रास नियम में लागू होने वाले निम्न कारक मानते हैं —

1. एक या एक से अधिक साधनों का स्थिर होना— जब अन्य साधनों की मात्रा को स्थिर रखते हुए एक साधन की मात्रा में उत्तरोत्तर वृद्धि की जाती है तो परिवर्तनशील साधन श्रम का स्थिर साधना के साथ अनुपात परिवर्तित होता चला जाता है दूसरे शब्दों में हम देख सकते हैं कि बढ़ती हुई श्रम मात्रा में स्थिर साधनों की और कम मात्रा के साथ काम करना पड़ता है ऐसी दशा में श्रम की उत्पादकता कम होती चली जाती है और उत्पत्ति ह्रास नियम लागू हो जाता है।

2. साधनों का अविभाज्य— उत्पत्ति के अधिकांश साधन अविभाज्य होते हैं यह अविभाज्य साधन अनुकूल बिंदु की प्राप्ति तक तो उत्पादकता को बढ़ाते हैं किंतु जब अनुकूलतमक बिंदु की प्राप्त के बाद भी साधनों का निरंतर उपयोग जारी आता है तब साधन की उत्पादकता घटाने लगती है और उत्पत्ति ह्रास नियम लागू हो जाता है।

3. उत्पत्ति के साधनों का पूर्व स्थापन ना होना — श्रीमती जांन रॉबिंसन साधनों की पूर्ण स्थानापन्नता को उत्पत्ति ह्रास नियम की क्रियाशीलता का मुख्य कारण बनाती है उनके अनुसार उत्पादन प्रक्रिया में एक साधन को दूसरे साधन के स्थान पर केवल एक सीमित तक ही प्रतिस्थापित किया जाता है उनके अनुसार उत्पत्ति के विभिन्न साधन परस्पर अपूर्ण स्थापनापन्न होते हैं जिसके कारण सीमित साधन की कमी को किसी अन्य साधन से पूरा नहीं किया जा सकता।

4. साधनों की सीमितता— कुछ उत्पत्ति के साधनों की पूर्ति एवं सीमित होती है जैसे कि भूमि जब एक उत्पादकता किसी साधन की पूर्ति को नहीं बड़ा पाती है तो उसे उस साधन की सीमित मात्रा से ही कम चलना पड़ता है परिणाम स्वरूप सीमित साधन का अन्य परिवर्तन सेल साधनों से प्रयोग अनुपात बदलता जाता है और उत्पत्ति ह्रास नियम क्रियाशील हो जाता है।

उत्पत्ति ह्रास नियम का महत्व

1. अर्थशास्त्र का आधारभूत नियम— यह नियम के कृषि पर ही लागू नहीं होता बल्कि खनन, मछली पालन ,उद्योग ,मकान निर्माण आदि सभी उत्पादन क्षेत्रों में इसका उपयोग किया जाता है यह क्रियाशील होने के कारण इस नियम का कार्यक्षेत्र बहुत उपयोगी होता है घटते प्रतिफल का व्यावहारिक को देखते हुए विकस्टीड ने यह कहा है कि घटते प्रतिफल का नियम उतना ही सर्वभोमिक है जितना की जीवन का नियम है।

2. माल्थस के जनसंख्या सिद्धांत का आधार—  माल्थस का सिद्धांत यह बताता है कि हमें किसी देश में खदानों के उत्पादन में वृद्धि जनसंख्या में वृद्धि की अपेक्षा धीमी गति से होती है खदानों में धीमी गति से वृद्धि का कारण उत्पादित ह्रास नियम ही है

3. रिकार्डो के लागन सिद्धांत के आधार पर— रिकार्डो के गहरी खेती व विस्तृत खेती दोनों में लागन उत्पन्न होने के कारण उत्पत्ति ह्रास नियम ही है। गहरी खेती मैं जब दिए गए भूखंड पर श्रम व पूंजी की अतिरिक्त इकाइयों का प्रयोग किया जाता है तो उत्तरोत्तर इकाइयों की उत्पादकता घटती जाती है क्योंकि उत्पत्ति ह्रास नियम लागू होता है सीमांत इकाई की तुलना में पहले की इकाइयों को जो बचत प्राप्त होती है उसे रिकार्डो ने लगान कहा है इस प्रकार यह लगान उत्पत्ति ह्रास नियम की क्रियाशीलता का एक परिणाम है।

4. सीमांत उत्पादकता सिद्धांत का आधार— इस सिद्धांत के आधार पर उत्पत्ति के साधनों को उनकी सीमांत उत्पादकता के अनुसार पुरस्कार दिया जाता है क्यों की उत्पत्ति ह्रास नियम की क्रियाशीलता के कारण परिवर्तनशील साधन की सीमांत उत्पादकता घटती हुई होती है।

5. क्षेत्र के लोगों का जीवन स्तर प्रभावित करना है— एक क्षेत्र में जनसंख्या उत्पत्ति के अन्य साधनों की तुलना में अधिक तेजी से बढ़ती है तब वही उत्पत्ति ह्रास नियम लागू होने के कारण क्षेत्र के लोगों का रहन-सहन स्तर गिर जाएगा।

उत्पत्ति ह्रास नियम की सीमाएं

इस नियम की मुख्य सीमाएं निम्नलिखित हैं—

1. कृषि पद्धति में सुधार— कृषि क्षेत्र में वैज्ञानिक सुधारो से इस नियम की क्रियाशीलता को रोका जा सकता है किंतु सुधार की सभी एक सीमा भी होती है।

2. स्थिर कारक—  इस नियम की क्रियाशीलता के लिए कुछ कारकों को स्थिर करना आवश्यक होता है यदि कुछ कारकों को स्थिर नहीं रखा जाता है तो यह नियम नहीं कहलाता है।

3. परिवर्तनशील कारक— इस नियम की क्रियाशीलता के लिए आवश्यक होता है कि परिवर्तनशील कारकों की समस्त इकाई एक ही समान हो ताकि वास्तविक परिवर्तनशील कारक की इकाइयों में असमानता देखने को मिलती है।

4. परिवर्तनशील कारक की इकाइयां— यदि परिवर्तनशील कारक की इकाई पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं होता है तो यह नियम क्रियाशीलता नहीं होता है।

उत्पत्ति ह्रास नियम के क्षेत्र

मार्शल के अनुसार यदि नियम केवल कृषि एवं भूमि से निकलने वाले व्यवसाय में लागू होता है तो यह नियम निर्माण उद्योग में लागू नहीं होता है जैसे की निम्नलिखित से स्पष्ट है—

1. खनन व्यवसाय में— प्रारंभ में जब खनन से खनिज निकलता है तो यह काम साधनों से अधिक खनिज की प्राप्ति होती है खनन जैसे-जैसे गहरी होती जाती है साधनों की मात्रा में भी वृद्धि देखने को मिलती है किंतु साधनों की मात्रा में वृद्धि के अनुपात में खनिज की प्राप्ति बिल्कुल भी नहीं होती है इस में उत्पत्ति ह्रास नियम लागू होती है।

2. भवन निर्माण में—  भवन निर्माण में भी उत्पत्ति ह्रास नियम लागू होना जरूरी है क्योंकि भवन निर्माण की पहली मंजिल के बाद दूसरी मंजिल तैयार होती है दूसरी मंजिल की अपेक्षा में वह तीसरी मंजिल में निर्माण होती है जिसमें लागत में भी वृद्धि होती है इसी कारण जैसे-जैसे मंजिल की संख्या बढ़ती जाती है वैसे-वैसे ही साधनों की संख्या भी वृद्धि करनी पड़ती है।

3. मछली का व्यवसाय करने में— मछली का व्यवसाय में उत्पत्ति ह्रास नियम लागू होती है तालाब ,नदी या झील में जाल डालकर मछली निकालने से उसकी संख्या कम होती जाती है और अधिक मछलियों को प्राप्त करने के लिए इन्हें अधिक साधन एवं परिश्रम की आवश्यकता होती है आधुनिक अर्थशास्त्रियों के अनुसार यह नियम कृषि एवं विनिर्माण उद्योग दोनों में ही लागू होती है उत्पत्ति का कोई भी क्षेत्र में यदि कुछ साधनों को स्थिर रखकर अन्य साधनों की मात्रा में बढ़ाया जाता है तब कुछ समय पश्चात अनुपात प्राप्त हो जाता है।


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