व्यावसायिक अर्थशास्त्र, अर्थशास्त्र का ही एक भाग है जिसमें व्यावसाय की समस्याओ का अध्ययन किया जाता है। जिसमें व्यवसायिक समस्याओं को हल करने के लिए आर्थिक सिद्धांतों का प्रयोग किया जाता है, जिसे व्यवसायिक अर्थशास्त्र कहते हैं।
दूसरे शब्दों में, व्यवसाय अर्थशास्त्र में परंपरागत अर्थशास्त्र सिद्धांत के रूप में किया जाता है जिसके माध्यम से व्यवसाय की जटिल समस्याओं को हल करने के लिए प्रयोग में लाया जाता है, व्यवसायिक अर्थशास्त्र को प्रबंधकीय अर्थशास्त्र के नाम से भी जाना जाता है।
व्यावसायिक अर्थशास्त्र की परिभाषा
1. स्पेंसर एवं सिगिलमैन के अनुसार — "व्यावसायिक अर्थशास्त्र आर्थिक सिद्धांतों के व्यवसाय, व्यवहार के साथ एकीकरण है जिसका उद्देश्य प्रबंध द्वारा निर्णय एवं भावी नियोजन को सरल बनाना है।"
2. मैक्नायर एवं मौरियम— "व्यवसाय अर्थशास्त्र में व्यवसायिक के विश्लेषण के विचार के आर्थिक तरीकों या आर्थिक सिद्धांतों का प्रयोग सम्मिलित होता है।"
3. एडविन मेंसफील्ड— "व्यवसायिक अर्थशास्त्र विवेकपूर्ण प्रबंधकीय निर्णय लेने की समस्या पर आर्थिक विचारों और आर्थिक विश्लेषण के प्रयोग से संबंधित है।"
4. बेट्स एवं पार्किंन्सन— "व्यवसायिक अर्थशास्त्र सिद्धांत और व्यवहार दोनों में फार्म ओके अचारण का अध्ययन है।"
5. जोयल डीन— "व्यवसायिक अर्थशास्त्र का उद्देश्य यह बताता है कि विश्लेषण का उपयोग व्यापारिक नीतियों के निर्धारण में किस प्रकार से किया जा सकता है।"
व्यवसाय अर्थशास्त्र की विशेषताएं | व्यावसायिक अर्थशास्त्र की विशेषताएं बताइए ?
व्यवसाय अर्थशास्त्र की विशेषता को निम्न भागों में बांटा गया है–
1. सूक्ष्म अर्थशास्त्रीय स्वभाव—
व्यवसायिक अर्थशास्त्र, सूक्ष्म अर्थशास्त्र की मान्यता पर आधारित है, क्योंकि इसमें संपूर्ण व्यवस्था के स्थान पर आधारित है, एक फर्म की समस्या घटनाओं एवं क्रियाओं का विश्लेषण करके उनकी नीतियों पर नियंत्रण किया जाता है। जैसे उत्पादन की मात्रा व मांग का पूर्वानुमान लगाना एवं कीमतों का निर्धारण करना लाभ योजना का ध्यान केंद्रित करना है।
2. सिद्धांत एवं स्वभाव का समन्वय—
व्यवसायिक अर्थशास्त्र आर्थिक सिद्धांतों एवं अनेक व्यावहारिक पहलुओं का समन्वय करता है, इस प्रकार व्यवसायिक अर्थशास्त्र सिद्धांतों एवं व्यवहारिक दोनों पहलुओं पर निर्भर होने के कारण व्यवसाय की सफलता पर मार्ग बन जाते हैं।
3. प्रबंध के स्तर पर निर्णय—
व्यवसायिक अर्थशास्त्र का प्रमुख उद्देश्य नीति निर्धारण एवं प्रभावी नियोजन में प्रबंध की सहायता करना होता है, जिससे निर्णय लेने का कार्य अच्छे तरीके से किया जा सकता है, तथा व्यवसायिक अर्थशास्त्र इनमें आवश्यक सूचनाएं उपलब्ध कराता है।
4. निर्देशात्मक प्रक्रिया—
व्यवसायिक अर्थशास्त्र की प्रकृति वर्णनात्मक ना होकर निर्देशात्मक होती है और इसके अंतर्गत केवल आर्थिक सिद्धांतों के सैद्धांतिक पहलू का अध्ययन नहीं किया जाता बल्कि व्यवसायिक पहलुओं का भी स्पष्ट रूप से व्याख्या की जाती है, जिसमें नीति, निर्धारण, निर्णय एवं प्रभावी नियोजन की दिशा निर्देश होती है।
उदाहरण में हम, मांग देख सकते हैं, की मूल्य बढ़ाने पर मांग घटती है, तथा मूल्य घटाने पर मांग बढ़ती है, परंतु इस नियम में यह विचार नहीं किया जा सकता, की मांग में जो परिवर्तन होता है, वह अच्छा होता है या बुरा, किंतु व्यवसायिक अर्थशास्त्र में मूल्य वृद्धि से मांग में कमी, मूल्य में कमी से मांग में वृद्धि होती है, इसका प्रभाव फर्म पर देख कर आवश्यक निर्णय लिए जाते हैं, कि वस्तुओं एवं सेवाओं में वृद्धि होनी चाहिए अथवा नहीं।
5. आदर्शत्मक विज्ञान—
व्यवसायिक अर्थशास्त्र वास्तविक विज्ञान के साथ-साथ एक आदर्श विज्ञान भी है, किंतु इस अर्थशास्त्र में क्या है के स्थान पर 'क्या होना चाहिए?' पर अधिक जोर दिया जाता है, 'व्यापार लाभ क्या है? की अपेक्षा लाभ की मात्रा अधिक कैसे की जा सकती है, इस पर अधिक जोर दिया जाता है। लाभ में वृद्धि के साथ-साथ व्यापार की भी प्रगति पर भी जोर दिया जाता है। इस प्रकार व्यवसायिक अर्थशास्त्र यह बताता है कि किसी भी परिस्थिति में फर्म को अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए क्या करना चाहिए।
6. व्यापक अर्थशास्त्र का महत्व—
सूक्ष्म अर्थशास्त्र पर आधारित व्यवसायिक अर्थशास्त्र में व्यापक अर्थशास्त्र का अध्ययन बहुपयोगी होता है, क्योंकि इसका ज्ञान उस वातावरण से समझने में सहायक होता है, जिसमें की व्यवसायिक फर्म कार्य करती है। किसी भी व्यवसाय की सफलता के लिए एक प्रबंध को व्यापक परिवेश में सरकार की व्यापक नीति, मौद्रिक नीति, राजकोषीय नीति, मूल्य नीति, श्रम नीति, कर नीती आदि का अध्ययन करना भी आवश्यक होता है। व्यवसायिक अर्थशास्त्र के द्वारा इन सब बातों का अच्छे से अध्ययन करके अपनी राय प्रबंधकों को दी जाती है।
7. फर्म के सिद्धांत के अध्ययन से संबंधित—
व्यवसायिक अर्थशास्त्र में विशेष रुप से फर्म के सिद्धांत का अध्ययन किया जाता है, इसमें फर्म का मांग एवं पूर्ति की दशाओं का विश्लेषण, लागत एवं आगम विश्लेषण, कीमत निर्धारण, लाभ के स्तर, पूंजी बजट एवं विनियोग की लाभदायक का भी अध्ययन किया जाता है।
व्यवसायिक अर्थशास्त्र का महत्व
1. अनिश्चिता को कम करने मे सहायक—
प्रत्येक व्यवसाय को हर पल जोखिम का सामना करना पड़ता है, जोखिम अनिश्चिता के परिणाम स्वरुप उत्पन्न होती है। यदि व्यापार का भविष्य निश्चित होता है तो जोखिम होने का प्रश्न नहीं उठाता अनिश्चितता को कम करके ही जोखिम को कम किया जा सकता है। व्यवसाय अर्थशास्त्र के अंतर्गत लागत, लाभ, मांग, पूर्ति, मूल्य, उत्पादन आदि के संबंध में संख्या के रूप में अनुमान लगाए जाते हैं। व्यवसायिक अर्थशास्त्र का ज्ञान तथा उसकी तकनीकी द्वारा लगाए गए अनुमान अनिश्चित को निश्चित ही कम करने में सहायक होते हैं।
2. नियोजन से सहायक—
व्यवसायिक अर्थशास्त्र के अध्ययन द्वारा योजना बनाने में सहायता मिलती है साथ ही लागत, उत्पादन, मूल्य, मांग तथा नगद कोसों के आधार पर अनुमान लगाकर योजनाओं का निर्माण किया जाता है, यहाँ योजनाओं के लिए साधन कहां से प्राप्त हो सकते हैं? इस संबंध में भी व्यवसायिक अर्थशास्त्र मदद करता है साथ ही यह भी निश्चित करता है कि कौन सी योजना से संस्था को अधिकतम लाभ की प्राप्ति होगी।
3. निर्णय लेने में सहायक—
व्यवसायिक अर्थशास्त्र सही निर्णय लेने हेतु महत्वपूर्ण तकनीकों से अवगत कराने वाला विज्ञान है, वर्तमान समय में प्रबंधकों को किसी समय पर अनेक महत्वपूर्ण निर्णय लेने होते हैं और सही निर्णय लेने पर ही व्यवसाय की सफलता निर्भर करती है, किसी कार्य को करने के विभिन्न विकल्पों में से एक किसी एक को चुनना ही निर्णय कहलाता है।
4. सवंहन लेने में सहायक—
प्रभावशाली संदेश वाहन व्यवस्था व्यवसायिक संस्था को सुचारू रूप से संचालन करने के लिए जरूरी होती है, सवंहन से तात्पर्य, सूचना निर्देश, संदेश आदि को संबंधित व्यक्तियों तक पहुंचाने की व्यवस्था से है जो कार्य के परिणामों से कर्मचारियों को अवगत कराने में परिणाम सामने आते हैं।
5. नियंत्रण लेने में सहायक—
नियंत्रण में व्यवसायिक परिणामों की जांच सम्मिलित होती है, जिससे वह निश्चित किया जा सकता है कि वास्तविक परिणाम योजनाओं के अनुसार हुआ है या नहीं इसके लिए व्यवसायिक अर्थशास्त्र में लागत, नियंत्रण, किस्म नियंत्रण, मूल्य नियंत्रण आदि पर जोर दिया जाता है पर प्रभावी नियंत्रण स्थापित कर निर्धारित उद्देश्य को आसानी से प्राप्त किया जा सकता है।
6. संगठनत्मक कार्यों में सहायक—
योजना के क्रिया के लिए जिससे यह निश्चित जाता है कि विभागों तथा पक्षों के मध्य दायित्व तथा अधिकारों का विभाजन जरूरी है कार्य संगठन का होता है
व्यवसायिक अर्थशास्त्र अधिकारों एवं दायित्वों के विभाजन के कार्य में भी सहायक होता है, विनियोजित पूंजी पर लाभदायक की गणना करके संपूर्ण संगठन या उसके अलग-अलग विभागों की कार्य कुशलता को जाना जा सकता है और संस्था के प्रत्येक विभाग की जांच करके कमजोर विभागों की कार्यकुशलता बढ़ाई जा सकती है इस प्रकार संगठन को अधिक प्रभावशाली बनाया जा सकता है।
7. सामाजिक उत्तरदायित्व को प्रेरित करना—
वर्तमान समय में व्यवसाय की सफलता की माफ समीकरण उत्तरदायित्व को पूरा करने से लगाया जा सकता है कि व्यवसायिक अर्थशास्त्र उसके सामाजिक उत्तरदायित्व का भी बौद्ध कराता है। यह प्रबंध को ऐसी आर्थिक नीतियां अपनाने के लिए प्रेरित करता है जिससे देश में उपलब्ध संसाधनों का अधिकतम उपयोग हो सके प्रगति में श्रमिकों को सामन भाग होना चाहिए है रोजगार के अवसरों में वृद्धि हो सके उपभोक्ताओं को अधिकतम संतुष्टि प्राप्त हो सके देश की तीव्र आर्थिक विकास संभव हो सके।
8. मांग पूर्वानुमान में सहायक—
व्यापार की सफलता के लिए सबसे आवश्यक यह है कि भविष्य की मांग का सही अनुमान लगाया जा सकता है कि अनुमानों के सही हो जाने पर अनिश्चितता कम हो सकती है व्यवसायिक अर्थशास्त्र की उपयोगिता इसी कारण वर्तमान समय में निरंतर बढ़ती जा रही है क्योंकि इसके द्वारा उत्पादित वस्तु की मांग का अनुमान लगाया जा सकता है ताकि उत्पादन के लिए आवश्यक साधनों को एकत्र किया जा सके इसके लिए विक्रय कर्ताओं की राय विक्रय प्रबंधकों की राय विशेषज्ञों की राय संख्या किए एवं गणित की आकृतियां आदि का प्रयोग किया जा सकता है।
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