Mohammd Gauri ka Bharat Par Aakraman:-
भारत पर आक्रमण करने के लिए मोहम्मद ने एक बहुत बड़ी सेना संगठित की और भारत पर विजय प्राप्त करने के लिए निकल पड़ा, मोहम्मद गौरी के भारत पर आक्रमण इस प्रकार से है-
1. मुल्तान और उच्छ की विजय- सर्वप्रथम मोहम्मद ने मुल्तान के शिया शासकों पर आक्रमण किया। मुल्तान पर विजय प्राप्त करने के बाद वह दक्षिण में स्थित और उत्तर में पंजाब पर आक्रमण कर सकता था। लेकिन 1175 ई. में उसने पहला आक्रमण मुल्तान पर किया। मुल्तान पर अधिपत्य स्थापित करने में उसे कोई विशेष कठिनाई नहीं हुई। इसके बाद उसने उच्छ राज्य पर हमला किया और उस पर अधिकार कर लिया लेकिन लाहौर लेने में वह असफल रहा।
2. गुजरात पर आक्रमण- 1178 ई. मैं उसने राजस्थान का मरुस्थल पार किया और अन्हिलवाड़ पर आक्रमण किया। अन्हिलवाड़ के सोलंकी नरेश भीमदेव ने मोहम्मद गौरी की सेना का वीरतापूर्वक सामना किया। मोहम्मद गौरी को यह युद्ध बहुत ही महंगा पड़ा। गजनी पहुंचते-पहुंचते मार्ग में उसकी सेना का एक अंश नष्ट हो गया लेकिन वह हताश और निराश नहीं हुआ निरंतर आगे बढ़ते गया।
3. पंजाब पर आक्रमण- 1179 ई. में मोहम्मद गौरी ने पेशावर पर आक्रमण किया और उस पर अधिकार कर लिया। 1181 ई. में उसने लाहौर पर आक्रमण किया लेकिन गजनवी शासक खुसरो मलिक के विरुद्ध उसे कोई सफलता नहीं मिली। 1184 ई. में लाहौर पर उसका दूसरा आक्रमण भी असफल रहा। लेकिन स्यालकोट पर विजय प्राप्त करने में उसे सफलता मिली। 1186 ई. में उसने पंजाब पर पुनः आक्रमण किया और लाहौर को घेर लिया। लाहौर तथा पंजाब पर मोहम्मद गौरी का अधिकार हो गया। अब गौरी साम्राज्य की सीमा दिल्ली के चौहानों के राज्य की सीमा छूने लगी।
4. दक्षिणी सिंध और देवल पर अधिकार- 1182 ई. में उसने देवल पर आक्रमण किया और देवल के समस्त समुद्र प्रदेशों पर अधिकार कर लिया। निचले सिंधु के सुमरा शासकों ने उसकी अधीनता स्वीकार कर ली।
5. भटिंडा पर आक्रमण- 3 वर्षों तक पंजाब में अपनी शक्ति दृढ़ करने के पश्चात 1189 ई. में उसने भटिंडा के दुर्ग पर आक्रमण किया। दुर्ग प्राधिकार करने के बाद उसकी रक्षा के लिए 12,000 घुड़सवारों की एक सेना छोड़कर वह गजनी के लिए वापस चला गया।
6. तराइन का प्रथम युद्ध- दिल्ली के चौहान नरेश पृथ्वीराज तृतीय को जब भटिंडा के दुर्ग के पतन का समाचार मिला तो एक विशाल सेना लेकर भटिंडा दुर्ग पर अधिकार करने के लिए चल पड़ा। भटिंडा का दुर्ग चौहान राज्य के अंतर्गत था और उसकी रक्षा करना चौहानों का दायित्व था। यदि चौहान सतर्क होते तो मोहम्मद गौरी कभी भी भटिंडा पर अधिपत्य स्थापित करने में सफल नहीं होता। राजपूत सेना ने भटिंडा के दुर्ग को घेर लिया, आरजे बिहार समाचार मोहम्मद गौरी को मिला तो चौहानों से युद्ध करने के लिए वह रास्ते से ही लौट पड़ा।
1119 ई. में तराइन के मैदान में मोहम्मद गौरी और राजपूतों की सेनाओं के बीच घमासान युद्ध हुआ। मोहम्मद गौरी को पराजित करने के बाद राजपूतों ने भटिंडा के दुर्ग का घेरा प्रारंभ किया जिसे 13 महीने बाद अधिकृत कर सके।
7. तराइन का द्वितीय युद्ध- तराइन के प्रथम युद्ध की पराजय से मोहम्मद गौरी बहुत ही उदास हुआ। पराजय का बदला लेने के लिए उसने सैनिक तैयारियां प्रारंभ कर दी थी। और अपनी पराजय के लिए उसने अपने सेना नायकों को उत्तरदाई ठहराया। 1192 ई. में वह 1,20,000 घुड़सवारों की विशाल सेना लेकर गजनी से चल पड़ा। लाहौर पहुंचकर उसने अपनी सेना का पुनः निरीक्षण किया। इस बार वह बहुत ही सतर्क और सावधान था। तराइन के मैदान में पहुंचकर उसने बड़ी सतर्कता से सैनिक संरचना की और सैन्य संचालन किया। सैनिकों को भ्रमित करने के लिए उसने संधि वार्ता जारी रखी। उसे सैनिक तैयारियों के लिए कुछ समय चाहिए था। राजपूतों ने उस पर तत्काल आक्रमण ना करके भयानक भूल की। इन्हीं भूल की वजह से मोहम्मद गौरी को विजय प्राप्त हुई।
8. दिल्ली और अजमेर पर अधिकार- मोहम्मद गौरी के लौट जाने के बाद दिल्ली के तोमरों और चौहानों ने विद्रोह कर दिया। विद्रोह को दबाने का उत्तरदायित्व मोहम्मद गौरी के प्रति और सेनापति कुतुबुद्दीन ऐबक पर पड़ा। पृथ्वीराज के भाई हरीराज ने अपने भतीजे गोविंदराज को अजमेर से मार भगाया। क्योंकि वह मोहम्मद गौरी का शासक था। उसने रणथम्भौर के किले को भी देख लिया। कुतुबुद्दीन में विद्रोहियों को कुचल दिया और अजमेर और दिल्ली पर अधिपत्य स्थापित कर लिया। इन विजयों के बाद उसने गहढ़वाल राज्य की उत्तरी सीमा पर आक्रमण किया। उसने बरन और मेरठ पर अधिकार कर लिया।
9. गहड़वालराज्य पर आक्रमण- 1194 ई. में मोहम्मद गोरी ने गहड़वाल पर आक्रमण किया। इटावा के नजदीक चंद्र वार के रण क्षेत्र में मोहम्मद गौरी और गहड़वाल शासक जयचंद की सेनाओं के बीच भीषण युद्ध हुआ। राजपूतों ने बड़ी वीरता पूर्वक उनकी सेना का सामना किया। और ऐसा प्रतीत होने लगा कि मुस्लिम सेना पराजित हो जाएगी। खोलो लेकिन जयचंद की आंख में तीर लग जाने के कारण उसकी मृत्यु हो गई। राजपूत सेना में भगदड़ मच गई। जीत हार में में बदल गई, बनारस तक के प्रदेश पर मोहम्मद गौरी का अधिकार हो गया। और उसने बनारस के मंदिरों को लूटा और ऊंटों पर लूट का सामान लादकर गजनी ले गया।
10. ग्वालियर पर अधिकार- 1195 ई. में मोहम्मद गौरी और ग्वालियर पर अधिकार करने के लिए फिर भारत आया। बयाना के भट्टियों ने शत्रु सेना का वीरतापूर्वक सामना किया, लेकिन वह हार गए। वाह ग्वालियर के दुर्ग पर विजय प्राप्त नहीं कर सका उसने ग्वालियर के शासक सूलक्षणपाल से संधि कर ली सुलक्षणपाल ने उसकी अधीनता स्वीकार कर ली 1197 ई. में बयाना के हकीम तूगरिल ने ग्वालियर पर अधिकार किया।
11. गुजरात पर आक्रमण- 1196-97 ई. में राजस्थान में मेंड़ों ने विद्रोह कर दिया। उन्हें गुजरात के शासक का सहयोग प्राप्त था गुजरात की सेना ने एबक और अज़मेर के हकीम की मुस्लिम सेना को पराजित कर दिया और एबक को एक दुर्ग में घेर लिया परंतु इसी समय गजनी की सेना आ जाने के कारण गुजरात की सेना को घेरा लेना पड़ा, बदला लेने के लिए एबक ने गुजरात पर आक्रमण कर लिया और राजधानी अन्हिलवाड़ को बुरी तरह लूटा।
12. बुंदेलखंड की विजय- बुंदेलखंड पर चंदेल वंश के शासकों का राज्य था। 1202 ई. में एबक ने चंदेल राज्य के सर्वश्रेष्ठ दुर्ग कलिंजर को घेर लिया। जब चंदेल नरेश परमर्दिन को विजय की आशा नहीं रही, तो उसने दुर्ग खाली कर दिया और अजयगढ़ चला गया। इस प्रकार ऐबक ने कालिंजर, महोबा और छतरपुर पर अधिकार कर लिया।
13. बिहार और बंगाल पर विजय- बिहार और बंगाल पर विजय प्राप्त करने का श्रेय एक साधारण पूर्व सेनापति इख्तियारुद्दीन बिन बख्तियार खिलजी को है। गहड़वालो की पराजय के बाद तुर्की सेना ने अवध और आसपास के क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया। इख्तियारुद्दीन बिहार की पश्चिमी सीमा पर स्थित एक छोटी सी जागीर का स्वामी था। उसने विहार पर छापा मारना शुरू कर दिया, और उदन्तपुर नालंदा तथा विक्रमशिला विश्वविद्यालयों को लूटा तथा उन्हें जलाकर नष्ट कर दिया। इसके पश्चात उसने बंगाल के राजा लक्ष्मणसेन की राजधानी नवदीप पर आक्रमण किया लक्ष्मणसेन भाग गया। और तब उन्होंने नवदीप को बुरी तरह लूटा उसने लखनौती को अपनी राजधानी बनाया। और 1197 ई. और 1202 ई. के बीच उसने बिहार पर और 1205 ई. के लगभग बंगाल पर अपना अधिपत्य स्थापित किया और 1206 ई. में उसकी मृत्यु हो गई।
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