ऐतिहासिक पद्धति का अर्थ, परिभाषा, महत्व, उद्देश्य, सीमाएं

ऐतिहासिक पद्धति

इतिहास में केवल 'क्या था' का ही अध्ययन नहीं किया जाता है बल्कि यह भी किया जाता है कि 'क्यों और कैसे घटित हुआ'। इतिहास के द्वारा समाज की सामाजिक सांस्कृतिक आर्थिक एवं राजनीतिक घटनाओं का क्रमिक एवं व्यवस्थित अध्ययन करके हम सामाजिक जीवन की निरंतरता एवं सम्मानीय धारा को समझ सकते हैं। आज यह विचार जोर पकड़ता जा रहा है कि कोई भी घटना अचानक घटित नहीं होती लेकिन उसका एक अतीत होता है, एक इतिहास होता है, जिसे समझे बिना उस घटना के संपूर्ण एवं स्पष्ट व्याख्या और विश्लेषण संभव नहीं है। यही कारण है कि समाजशास्त्र में ऐतिहासिक शोध का प्रयोग बड़ा है और अनेक समाज शास्त्रियों ने समाज सामाजिक समूह एवं संस्थाओं का अध्ययन करने के लिए तो ऐतिहासिक पद्धति ही एकमात्र विधि है। समाजशास्त्र में ऐतिहासिक विधि का प्रयोग 19वीं सदी से ही होने लगा। सन 1859 में डार्विन की पुस्तक 'जीवों की उत्पत्ति' के प्रकाशन के बाद से तो समाज शास्त्र एवं मानव शास्त्र में ऐतिहासिक विधि लगभग छा गई। और परिवार, विवाह, नातेदारी, धर्म, राजनीतिक एवं आर्थिक संस्थाओं के अध्ययन हेतु इस विधि का प्रयोग किया जाने लगा।

समाजशास्त्र में ऐतिहासिक विधि का प्रयोग करने वाले प्रमुख विद्वान काॅम्टे, स्पेंसर, समनर, दुर्खीम, वेबर, सोरोकिन, ऑगबर्न, मिल्स, रेमण्ड, ऐरो, वैलाह, नारमन, विरबाय, टोयनबी, थामस एवं नैनिकी, कोल्टन, वेस्टरमार्क, राधामुकुंद मुखर्जी, घुरिए, ए. आर. देसाई, कपड़िया, कर्वे, दुबे आदि प्रमुख हैं।


ऐतिहासिक पद्धति का अर्थ—

अंग्रेजी का हिस्ट्री शब्द हिस्टोरिया से बना है जिसका अर्थ है सीख कर या खोज कर ज्ञान प्राप्त करना। सामान्यता ऐतिहासिक विधि का अर्थ है। किसी घटना या समस्या के कारकों को उनके अतीत में खोजना।


ऐतिहासिक विधि का उद्देश्य—

 उन विशिष्ट दशाओं या कारकों का विवरण प्रस्तुत करना है जिनका किसी घटना के उद्गम विकास या परिवर्तन से कोई संबंध रहा है। दूसरे अर्थों में अतीत की सहायता से वर्तमान को समझना ऐतिहासिक विधि का मूल मंत्र है।


ऐतिहासिक पद्धति की परिभाषा —

श्रीमती पी. वी. यंग के अनुसार ( P. V. Young) — "ऐतिहासिक पद्धति आगमन के सिद्धांतों के आधार पर अतीत की एवं सामाजिक शक्तियों की खोज है जिन्होंने की वर्तमान को ढाला है।"

इस बात से स्पष्ट है कि ऐतिहासिक विधि में भूतकाल की घटनाओं की खोज आगमन विधि द्वारा करके सिद्धांतों का निर्माण किया जाता है अर्थात किसी विशेषता के आधार पर व्यापक निष्कर्ष निकाले जाते हैं।


ऐतिहासिक पद्धति का महत्व_

अतीत में घटित हुई घटनाओं का अध्ययन करने के लिए ऐतिहासिक पद्धति की उपयोगिता एवं महत्व निर्विवाद (बिना विवाद का) है।

एम. एच. गोपाल ने लिखा है— "यदि कोई भी सामाजिक अनुसंधान कर्ता जो वर्तमान का विश्लेषण करते समय अतीत की उपेक्षा करता है, बहुत बड़ी जोखिम उठाता है।"

इतिहास हमें अतीत के समाज का ज्ञान कराता है जिसकी कोई भी समाज वैज्ञानिक अवहेलना नहीं कर सकता। अनेक समाज शास्त्रियों ने अपने अध्ययन में ऐतिहासिक पद्धति का उपयोग किया है। दोनों विज्ञानों की घनिष्ठता के कारण ही समाज में एक नई शाखा ऐतिहासिक समाजशास्त्र का उदय हुआ।


ऐतिहासिक पद्धति की उपयोगिता एवं महत्व इस प्रकार हैं_

1. विकासशील घटनाओं का अध्ययन - ऐतिहासिक पद्धति के द्वारा हम किसी विशेष घटना या संस्था के घटने उदय होने उसकी उत्पत्ति और विकास को था उसे जन्म देने वाली परिस्थितियों को ज्ञात कर सकते हैं। अतीत के माध्यम से ही हम वर्तमान को अच्छी तरह समझ सकते हैं।

2. सामाजिक सांस्कृतिक परिवर्तनों का अध्ययन- ऐतिहासिक विधि के द्वारा हम सामाजिक सांस्कृतिक परिवर्तनों की प्रक्रिया को सरलता से समझ सकते हैं। समाज वैज्ञानिकों की विशेष रूचि परिवर्तन को ज्ञात करने में होती है। जब सामाजिक संस्थाओं एवं परिस्थितियों में परिवर्तन आता है तो उनके प्रभाव के कारण सामाजिक संगठन एवं संरचना भी परिवर्तित होती है। परिवर्तन की इस प्रक्रिया का अध्ययन ऐतिहासिक विधि द्वारा ही संभव है।

3. अतीत के प्रभाव का मूल्यांकन - ऐतिहासिक पद्धति के द्वारा हम किसी भी समाज पर भूतकालीन प्रभाव के महत्व का मूल्यांकन कर सकते हैं। अतीत के प्रभाव से कोई भी समाज मुक्त नहीं होता है, लेकिन परंपरागत समाज एवं प्राचीन सांस्कृतिक वाले समाजों का अध्ययन उस समय तक आप पूर्ण ही रहेगा जब तक उन पर पड़ने वाले अतीत के प्रभाव का मूल्यांकन नहीं कर लिया जाता है। जी समाज का इतिहास जितना लंबा होता है, उस पर अतीत का प्रभाव भी उतना ही गहरा होता है। जिसका अध्ययन ऐतिहासिक पद्धति से ही संभव है।

4. समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण की व्यापकता - समाजशास्त्र की अन्य विधियां सामाजिक घटनाओं को विभिन्न छोटी छोटी इकाइयों में बांटकर उनका सूक्ष्मता से अध्ययन करती है। जबकि ऐतिहासिक पद्धति सामाजिक घटनाओं को उनकी समग्रता एवं संपूर्णता में देखती है। इस प्रकार यह विधि समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण को व्यापकता प्रदान करती हैं। इसके द्वारा समग्रवादी अध्ययन किए जा सकते हैं।

5. सामाजिक शक्तियों का अध्ययन - ऐतिहासिक पद्धति के द्वारा हम उन सामाजिक शक्तियों का अध्ययन कर सकते हैं, जिन्होंने वर्तमान सामाजिक व्यवस्था के निर्माण में योगदान दिया है। अतीत के अध्ययन से ही हम वर्तमान के रहस्यों को जान सकते हैं।


ऐतिहासिक पद्धति की सीमाएं—

ऐतिहासिक पद्धति एक उपयोगी एवं महत्त्वपूर्ण अध्ययन विधि है, लेकिन इसकी भी कुछ सीमाएं हैं जो इस प्रकार हैं_

1. विश्वसनीय सामग्री का अभाव— ऐतिहासिक विधि से की सबसे बड़ी सीमा यह है कि जिन स्रोतों द्वारा तथ्यों का संकलन किया जाता है, उन्हें प्रामाणिक एवं विश्वास ने कैसे माना जाए। अधिकांश ऐतिहासिक विवरण अतिशयोक्तिपूर्ण, पक्षपातपूर्ण एवं बढ़ा चढ़ाकर लिखे जाते हैं।

2. रिकॉर्ड रखने में दोषपूर्ण तरीके— इस विधि में एक कठिना यह भी है कि ऐतिहासिक तथ्यों के रिकॉर्ड व्यवस्थित तरीके से नहीं रखे जाते।

3. प्रलेखो का बिखराव— ऐतिहासिक विधि का एक दोष यह भी है कि इसमें दस्तावेज इधर-उधर बिखरे होते हैं, वह एक ही स्थान पर उपलब्ध नहीं होते हैं।

4. तथ्यों या घटनाओं की परीक्षा व पुनरावृति असंभव— ऐतिहासिक घटनाओं का संबंध भूतकाल से होता है, जिनकी ना तू पुनरावृति हो सकती है और ना ही उन का अवलोकन भी किया जा सकता है, उन्हें केवल तार्किक आधार पर समझा जा सकता है।

5. गणना और माप संभव नहीं— क्योंकि ऐतिहासिक तथ्यों एवं घटनाओं का संबंध भूतकाल से होता है, अतः उनका वर्णन नहीं किया जा सकता है, उनका सांख्यिकी की विधि द्वारा माप संभव नहीं है।

6. एकरूपता का अभाव— ऐतिहासिक तथ्यों के बारे में विभिन्न इतिहासकारों के विचारों में एकरूपता नहीं पाई जाती है। उनकी मत भिन्नता के कारण सही स्थिति क्या है, यह जानना थोड़ा कठिन कार्य है।

7. आधुनिक समाजों के लिए अनुपयुक्त— ऐतिहासिक पद्धति द्वारा हम अतीत के समाजों का अध्ययन कर सकते हैं, लेकिन वर्तमान काल की अनेक समस्याओं जिनका संबंध तात्कालिक घटनाओं से है, इस विधि द्वारा नहीं कर सकते।

8. पक्षपात की संभावना— ऐतिहासिक विधि से अध्ययन करने में व्यक्तिगत पक्षपात की अधिक संभावना रहती है क्योंकि प्रत्येक इतिहासकार घटना को अपने दृष्टिकोण से देखता है और उसकी व्याख्या और निष्कर्ष उसके अपने होते हैं।

9. काल्पनिक तथ्यों का प्रयोग— ऐतिहासिक पद्धति में प्राचीन घटनाओं, समाजों, संस्थाओं एवं संस्कृतियों का अध्ययन किया जाता है। कई बार हमें इनकी प्रारंभिक स्थिति के बारे में कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं होते हैं। ऐसी स्थिति में शोधकर्ता उन के बारे में काल्पनिक अनुमान ही लगा पता है, उसके अध्ययन को आ वैज्ञानिक एवं दोषयुक्त माना जाता है।


ऐतिहासिक विधि के मुख्य चरण_

किसी भी विधि द्वारा सही निष्कर्ष प्राप्त करने के लिए अध्ययन को विविध होना चाहिए, यह अध्ययन कुछ निश्चित चरणों या सोपान ओके माध्यम से होना चाहिए ऐतिहासिक विधि के मुख्य चरण इस प्रकार से हैं_

1. समस्या का निर्धारण— ऐतिहासिक विधि का प्रथम चरण है समस्या का निर्धारण। ऐतिहासिक विधि द्वारा अध्ययन करने के लिए केवल उसी समस्या को चुनना चाहिए, जिसका संबंध अतीत की घटनाओं से है। ऐतिहासिक विधि द्वारा उन समस्याओं का अध्ययन नहीं किया जा सकता जो केवल वर्तमान घटनाओं से संबंधित हो। इसके अतिरिक्त समस्या का चुनाव करते समय इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि समस्या से संबंधित तथ्यों के संकलन के लिए आवश्यक सुविधाओं का स्रोत भी उपलब्ध हो।

2. तथ्य संकलन के स्रोत का निर्धारण— द्वितीय चरण है तथ्य संकलन के स्रोत का निर्धारण। वास्तव में अध्ययन की सफलता काफी हद तक इस बात पर निर्भर करती है कि आवश्यक तत्वों का संकलन कैसे और कहां से हुआ है। ऐतिहासिक विधि के अंतर्गत तथ्य संकलन के लिए स्रोत का निर्धारण विशेष सूझबूझ द्वारा होना चाहिए।

3. तथ्यों को एकत्र करना— सही स्रोतों का निर्धारण कर लेने के बाद वास्तव में तथ्य संकलन का कार्य करना चाहिए। इस चरण में ध्यान रखने योग्य मुख्य बात यह है कि केवल आवश्यक तथ्यों का ही संकलन किया जाए। व्यर्थ के तथ्यों को संकलित नहीं करना चाहिए। तथ्य संकलन के समय होने वाले व्यय को भी ध्यान में रखना चाहिए।

4. संकलित तथ्यों का वर्गीकरण— इस चरण में समस्त संकलित तथ्यों को विभिन्न आधारों पर अलग-अलग श्रेणियों में विभक्त करना चाहिए। यही वर्गीकरण कर लेने पर तथ्यों का तुलनात्मक अध्ययन सरल हो जाता है। तथा सही निष्कर्ष प्राप्त करने में सहायता मिलती है।

5. तथ्यों का विश्लेषण एवं व्याख्या— यह कार्य पूर्ण रूप से भाव एवं पक्षपात रहित होकर करना चाहिए। विश्लेषण के आधार पर निष्कर्ष प्राप्त करने चाहिए तथा उन्हें नियम के रूप में प्रस्तुत करना चाहिए। इस समय ध्यान रखना चाहिए कि यह व्याख्या रोचक भी हो।

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