युवा तुर्क आंदोलन 1908 - युवा तुर्क आंदोलन के कारण

 युवा तुर्क आंदोलन 1908

        19वीं शताब्दी में तुर्की को यूरोप की महत्वपूर्ण शक्तियों ने ’बीमार राज्य’ की संज्ञा दी थी और हर शक्तिशाली देश अपने हितों में इस बीमार राज्य का शोषण करने का प्रयत्न कर रहा था। 19वीं शताब्दी के अंत आते-आते तुर्की की आर्थिक स्थिति बहुत दयनीय हो चुकी थी। 'मुराद पंचम' भी स्थिति को संभालने में असमर्थ रहा। सितंबर 1876 ईस्वी में अब्दुल 'हमीद द्वितीय' तुर्की का सुल्तान बना उसके निरंकुश शासन के कारण तुर्की की स्थिति दिन प्रतिदिन और अधिक दयनीय होने लगी। विदेशी हस्तक्षेप भी अत्यधिक बढ़ गया। उस के शासनकाल में तत्कालीन व्यवस्था के विरोध में प्रतिक्रिया के रूप में एक आंदोलन का जन्म हुआ जिसे 'युवा तुर्क आंदोलन' के नाम से जाना जाता है। इस आंदोलन ने पूरी समस्या को ही बदल कर रख दिया। 1908 ई. में पूर्वी समस्या ने एक नया रूप ले लिया। वह में युवा तुर्क आंदोलन के परिणाम स्वरूप 'अब्दुल हमीद द्वितीय' के निरंकुश शासन का अंत हुआ। इस आंदोलन को चलाने वाला वर्ग युवा तुर्क वर्ग था। अतः इसे युवा तुर्क आंदोलन के नाम से जाना जाता है। 


युवा तुर्क आंदोलन के कारण

1. अब्दुल हमीद द्वितीय का निरंकुश शासन- सुल्तान अब्दुल हमीद का शासनकाल 1887 ई. से 1908 ई. तक का था, वह अत्यंत निरंकुश एवं शिक्षा जारी शासक था। बर्लिन की संधि के बाद सुल्तान के निरंकुश शासन का प्रारंभ हो गया था। अब्दुल हमीद ने संसद को भंग कर मंत्रियों को उनके अधिकारों से वंचित कर दिया था। उदार वादियों को तुर्की से बाहर निकाल दिया गया। उदारवादी दल ने नेता पाशा को सुल्तान अजीज की हत्या के जुर्म में फंसा कर फांसी की सजा दे दी गई। ‌ परंतु इंग्लैंड व फ्रांस के दबाव के कारण दंड सुल्तान को वापस लेना पड़ा, परंतु पाशा की हत्या करवा दी गई। अब्दुल हमीद के इस निरंकुश शासन ने उदारवादी वर्ग एवं जनसाधारण को हिला कर रख दिया अत्याचार निरंकुशता एवं भ्रष्टाचार के वातावरण से अलग होकर उदारवादी वर्ग सुधार कार्यों पर विशेष बल देने लगा। तुर्की की वैधानिक प्रगति का स्वप्न देखने वाले उदार राष्ट्रवादी पार्लियामेंट के भंग होते ही निरंकुश शासन की समाप्ति हो गई।

2. यूरोप की राष्ट्रीय भावनाओं का प्रभाव- इसी समय लगभग संपूर्ण यूरोप में राष्ट्रवादी भावना जोर मार रही थी। 19वीं शताब्दी के पहले से ही यूरोप के अधिकांश देशों की जनता अपने-अपने देशों में निरंकुश शासन को समाप्त कर लोकसत्ता वादी शासन की स्थापना के लिए प्रयत्न कर रही थी। 1830 एवं 1848 में यूरोप में हुई क्रांति या 1871 ई. में जर्मनी एवं इटली का एकीकरण तुर्की में राष्ट्रीयता की भावना को भड़काने के लिए पर्याप्त थे।

3. अंतरराष्ट्रीय तुर्की की स्थिति- राष्ट्रवादी का की लहरें जब संपूर्ण यूरोप में चल रही थी और उनका प्रभाव तुर्की में भी पढ़ रहा था ठीक इसी समय में 1877 ईस्वी में रूस और टर्की के मध्य हुए युद्ध में तुर्की को पराजय का सामना करना पड़ा। रूस द्वारा तुर्की पर सेंनस्टीफन की संधि मार्च 1878 लादी में की गई जिससे तुर्की की स्थिति रूस के संरक्षित राज्य की तरह हो गई।‌ क्योंकि उसे अपने विशाल साम्राज्य के बहुत पड़ा। बर्लिन की संधि 1887 ई. में रूस के लाभों को कम कर दिया लेकिन तुर्की का विघटन कम नहीं हुआ इससे तुर्की में असंतोष फैलना स्वाभाविक ही था।

4. तुर्की पर विदेशी प्रभाव- यूरोप के लगभग सभी शक्तिशाली देशों को बीमार राज्य मानकर अपने हितों में उसका शोषण करने का प्रयत्न किया था। तुर्की यूरोपीय देशों का प्रभाव बढ़ रहा था। ऑस्ट्रिया, जर्मनी, फ्रांस, इंग्लैंड, एवं रुस जैसे शक्तिशाली देशों ने तुर्की की राजनीति में हस्तक्षेप कर उसे अपने प्रभाव में भी लेने का प्रयास किया। यह प्रभाव इतना अधिक बढ़ चुका था कि बर्लिन की संधि में तुर्की के भाग्य का निर्णय यूरोपीय देशों ने किया और तुर्की ने उस निर्णय को स्वीकार भी कर लिया। उदारवादी नेता तुर्की में विदेशी प्रभाव की समाप्ति के चाहते थे। इस लिए इस आन्दोलन का होना तय था।

5. राष्ट्रीय नेताओं एवं संस्थाओं का योगदान- युवा तुर्क आंदोलन की पृष्ठभूमि में राष्ट्रवादी नेताओं एवं विभिन्न राष्ट्रवादी संस्थाओं का भी महत्वपूर्ण योगदान था। राष्ट्रवादी नेताओं में अहमद रिजा मुरादबे, आगस्त काॅम्टे, कमाल, इब्राहिम, तेमो इमिल दुखाईम,  हेनरी वर्गसन, सबाहअलाद्दीन‌ इत्यादि सभी राष्ट्रवादी नेता थे। और संस्थाओं में से एकता एवं प्रगति समिति, वतन वतन एवं स्वतंत्रता, आटोमन सोसाइटी ऑफ लिबर्टी विशेष संस्थाएं थी।

6. प्रकाश का योगदान- युवा तुर्क आंदोलन की पृष्ठभूमि में प्रकाशन के योगदान से भी इनकार नहीं किया जा सकता मेशवर्क मीजान एवं तरक्की जैसे समाचार पत्र पत्रिकाओं ने युवा तुर्क आंदोलन की पृष्ठभूमि तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

इस प्रकार युवा तुर्क आंदोलन की पृष्ठभूमि में जो कारक सामने आए हैं, उनसे स्पष्ट होता है कि आंदोलन के मूल में अब्दुल हमीद द्वितीय के शासन की निरंकुशता एवं विदेशों में तुर्की की स्थिति विशेष रूप से उत्तरदाई थी। जिससे  राष्ट्रवादी नेताओं की प्रेरणा का स्रोत बनी यूरोप में विकसित हो रही राष्ट्रवाद की भावनाएं तथा अस्त्र बना प्रकाशन।


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