बोल्शेविक क्रांति,इसके परिणाम,और महत्त्व व लेनिन का योगदान

 1917 की पहली रूसी क्रांति को बोल्शेविक क्रांति के नाम से जाना जाता है

(Bolshevik kranti)


1905 की रूसी बोल्शेविक क्रांति के कारण

1. युद्ध का विरोध -

1905 से 1917 तक के समय में जारशाही नीतियों में कोई परिवर्तन न देख कर जनता सशंकित हो गई थी। क्योंकि जार की नीतियां अत्यंत ही कठोर थी। अब वहां जनता का विचार बन चुका था कि जारशाही का अंत करके ही रूसी संतुलन को ठीक किया जा सकता है। और जैसे-जैसे क्रांतिकारी भावनाएं देश में बढ़ती गई वैसे ही जारशाही निरंकुश होती चली गई। और रूस में अस्थाई सरकार की स्थापना हो गई। लेकिन वह अस्थाई सरकार ने भी युद्ध जारी रखने की नीति को अपनाई।

2. यूरोपीय राष्ट्रों का हस्तक्षेप नहीं -

प्रथम विश्वयुद्ध जारी होने के कारण यूरोपीय राज्य रूसी क्रांति में सशस्त्र हस्तक्षेप न कर सके।

3. विरोधियों में फूट -

विरोधियों की दोषपूर्ण नीति एवं फूट का लाभ बोल्शेविकों ने उठाया।

4. समय की अनुकूलता -

कठिन समय में भी बोलशेविक चुपचाप अपना प्रचार अभियान चलाते रहे। और लेनिन के निर्देशों का पालन करते रहे। बोल्शेविक ने उचित समय में क्रांति करके सत्ता पर अधिकार कर सफलता प्राप्त की।

5. जनता का समर्थन -

लेनिन द्वारा बनाए गए बोलशेविकों के कार्यक्रम चार सूत्रीय था

  1.        कृषकों को भूमि, 
  2.        भूखों को भोजन, 
  3.        सोवियतों को शक्ति, 
  4.        जर्मनी के साथ संधि।

रूस में बोल्शेविक क्रांति का क्या प्रभाव पड़ा?
रूस में बोल्शेविक क्रांति का महत्व

बोल्शेविक क्रांति की सफलता ने रूस के साथ ही संपूर्ण विश्व को प्रभावित किया। क्रांति का महत्व तब अधिक स्पष्ट हो जाता है जबकि हम देखते हैं क्रांति के सिद्धांतों का पालन करते हुए रूस आज संसार की प्रमुख महाशक्ति है। बोल्शेविक की 1917 की क्रांति के महत्वपूर्ण परिणाम निकले -

1. बोल्शेविक की 1917 की क्रांति ने 300 वर्षों से चले आ रहे निरंकुश एवं प्रतिक्रियावादी जार शासन की समाप्ति कर दी।

2. रूस में सर्वहारा वर्ग की सरकार की स्थापना हुई। किसने रूस में एक नए प्रकार का समाजवादी ढांचा तैयार किया। 

3. रूस में स्थापित हुई साम्यवादी सरकार ने पूंजीवाद का घोर विरोध किया। इसके परिणाम स्वरूप रूस में उद्योगों का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया। जमींदारों और पूंजीपतियों को समाप्त कर दिया गया। ‌ कृषक वर्ग को उनकी जरूरत के अनुसार भूमि प्रदान की गई। इस प्रकार रूस ने जिस नई आर्थिक नीति का आवाहन किया।

4. रूसी क्रांति की महत्वपूर्ण उपलब्धि लेनिन का उदय भी कहा जा सकता है। जिस ने रूस की भाभी नीति को पूर्णतया एक नई दिशा दी है। आज भी रूस में लेनिन का बड़े आदर के साथ नाम लिया जाता है।

5. रूस की क्रांति ने रूस में ही नहीं, अपितु विश्व को भी प्रभावित किया। रूसी क्रांति का सबसे बड़ा परिणाम विश्वयुद्ध से रूस का हाथ खींच लेना था, जिसका सीधा संबंध 3 मार्च 1918 की ब्रेस्ट विलोवेस्ट की संधि के रूप में देखा जा सकता है। हालांकि इस संधि से रूस को अत्यधिक अपमान सहना पड़ा लेकिन युद्ध से अलग होकर वह देश की आर्थिक व्यवस्था एवं पुनर्निर्माण की ओर ध्यान दे सका। रूस ने जिस नवीन पद्धति से कार्य किया जिसके कारण वहां के लोग आज समाजवादी सोवियत गणतंत्र संघ के नाम से भी जानते हैं। जो कि उस क्रांति की देन है, रूस को आज संसार की महाशक्ति के रूप में स्थान दिया गया है। रूस का विचार था कि यूरोप में सर्वहारा वर्ग की सरकार स्थापित की जाएगी। और 1919 में कम्युनिस्ट इंटरनेशनल स्थापित किया गया। इसी कारण विश्व दो गुटों में विभाजित हो गया। एक घूंट में पूंजीवादी देश आ गए और दूसरे में साम्यवादी। दूसरे शब्दों में कहें तो विश्व पुनः दो गुटों में बट गया।


रूस में बोल्शेविक क्रांति का परिणाम

  •  बोल्शेविक क्रांति के परिणाम स्वरूप ज़ारनिकोलस के राज्य का अंत करके उसे सोवियत समाजवादी गणराज्य संघ में बदल दिया गया। रूस में सर्वहारा वर्ग की सरकार की स्थापना हुई, और राज्य की आर्थिक नीतियों को समाजवादी आदर्शों के माध्यम से चलाने का प्रयास किया गया।
  • रूस में स्थापित हुई साम्यवादी सरकार ने पूंजीवाद का घोर विरोध किया, और काम करने के अधिकार को संवैधानिक अधिकार बनाया गया और सबको कार्य उपलब्ध कराना सरकार का कर्त्तव्य हो गया।


रूसी क्रांति में लेनिन का योगदान

            लेनिन का योगदान :- बोल्शेविक क्रांति का नेतृत्व करता लेनिन ही था, बोल्शेविक क्रांति के कारण जुलाई 1917 में करेन्स्की की सरकार ने बोल्शेविकों को गिरफ्तार करना शुरू किया। तभी लेनिन भागकर फिनलैंड पहुंचा और वहां से बोल्शेविकों को पत्र लिखकर उनका मार्गदर्शन किया। उसने अपनी नीतियों एवं विचारों से उन्हें गुप्त पत्रों द्वारा अवगत कराया। लेनिन ने 23 अक्टूबर को सशस्त्र क्रांति का दिन चुनने का आदेश दिया। सेना ने युद्ध करने से इंकार कर दिया। मजदूरों ने हड़ताल कर दी। 6 नवंबर को (Red Guard) लाल रक्षकों ने पेट्रोगार्ड के रेलवे स्टेशनों, टेलीफोन केंद्रों, सरकारी भवनों में अधिकार कर लिया। यह रेडगाड बोल्शेविक दल के स्वयंसेवक थे। इनकी संख्या 25000 थी। परंतु पेट्रोगाड की सेना का सहयोग प्राप्त होने से इनकी शक्ति अत्यधिक बढ़ गई थी। 7 नवंबर को करेन्स्की रूस छोड़कर भाग गया। बिना रक्त बहाए रूस की राजधानी पर बोल्शेविक दल का अधिकार हो गया।

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