सल्तनत कालीन सामाजिक जीवन एवं रहन सहन - saltnat kaal ki samajik dasha ka varnanan

 हेलो students आज हम इस लेख में सल्तनत कालीन भारत की सामाजिक दशा के बारे में  हिन्दी में पढ़ेंगे। इसमे हमने सल्तनत काल की सामाजिक जीवन रहन सहन आदि के विषय में चर्चा की है। तो आप सभी ध्यान पूर्वक पॉइंट्स को याद कर लेंवे।


सल्तनत कालीन भारत की दशा या जीवन का वर्णन कीजिए

             11 वीं और 12 वीं शताब्दी में तुर्क अफगान आक्रमणकारियों ने तलवार के बल पर भारत में इस्लाम धर्म का प्रचार किया और भारत में इस्लामी राज्य की स्थापना की। 1206 ईस्वी में कुतुबुद्दीन ऐबक ने दिल्ली में एक स्वतंत्र राज्य की स्थापना की। 1206 ईस्वी से 1526 ई. के बीच अर्थात 320 वर्षों के बीच गुलाम वंश (1206-1209 ई.), और खिलजी वंश (1290-1320 ई.) तक और तुगलक वंश सैयद वंश और लोदी वंश के शासकों ने दिल्ली पर शासन किया। 320 वर्षों का यह कालखंड भारतीय इतिहास में दिल्ली सल्तनत के नाम से जाना जाता है।


सल्तनत कालीन सामाजिक दशा का वर्णन


सल्तनत काल में हिंदू और मुसलमानों की संख्या अधिक थी। यहां मुस्लिम वर्ग शासक था और हिंदू वर्ग शासित था। इस प्रकार समाज दो वर्गों में विभाजित था।

1.मुस्लिम समाज और 2.हिंदू समाज

1.मुस्लिम समाज— मुस्लिम अपने आप को सर्वश्रेष्ठ समझते थे क्योंकि वह शासक वर्ग थे। यद्यपि उनमें जाति व्यवस्था प्रचलित नहीं थी। यद्यपि जन्म नस्ल और धर्म के आधार पर वे अनेक वर्गों में विभाजित थे । लाह के दरबार में सभी मुसलमान समान थे। विदेशी मुसलमान भारतीय मुसलमानों को घृणा की दृष्टि से देखते थे। इस प्रकार मुस्लिम समाज निम्न दो वर्गों में विभाजित था।


¹ विदेशी मुसलमान— नस्ल के आधार पर विदेशी मुसलमान इरानी, अरबी, तुर्की, मंगोल, पठान आदि वर्गों में विभाजित थे। सल्तनत के सभी नागरिक और सैनिक पदों पर उनका एकाधिकार था। इसी वर्ग से सुल्तान का भी निर्वाचन होता था इसी वर्ग से मौलवी और उलेमाओं की नियुक्ति होती थी इसी वर्ग के दास या गुलाम सल्तनत के उच्च पदों पर पहुंच सकते थे।


² भारतीय मुसलमान- सल्तनत काल के प्रारंभ में भारतीय मुसलमानों की संख्या बहुत कम थी परंतु धीरे-धीरे भारतीय मुसलमानों की संख्या में वृद्धि होती गई विदेशी मुसलमानों के समान ना तो उन्हें सुविधाएं प्राप्त थी और ना सम्मान प्राप्त था कुतुबुद्दीन ऐबक से लेकर कैकुबाद तक सभी सुल्तानों ने भारतीय मुसलमानों को उच्च शासकीय पदों से वंचित कर रखा था। खिलजी और तुगलक वंश के शासकों ने भारतीय मुसलमानों को उच्च शासकीय पदों पर नियुक्त किया और गांव में रहकर कृषि कार्य करना बहुत ही कम मुसलमान पसंद करते थे। इसलिए धीरे-धीरे भारतीय मुसलमान नगरों कस्बों व्यापारिक मंडियों और सैनिक छावनी में केंद्रित होने लगे।


2.हिंदू समाज— हिंदू समाज अनेक जातियों और उप जातियों में विभाजित था जाति व्यवस्था अधिक जटिल और कठोर हो गई थी। वह अनेक अंधविश्वासों, रूढ़ियों, पाखंडों, कुरीतियों और छुआछूत की भावना से ग्रस्त थी। कुछ इतिहासकारों का कहना है कि- हिंदू अंधविश्वासी थे और वे ज्योतिष विद्या, जादू-टोना और अन्य शैतानी कार्यों में विश्वास करते थे। और उस समय छोटे लोगों का स्पर्श मात्र पाप समझा जाता था। और यह लोग विदेशियों के साथ किसी प्रकार का विवाह और खान-पान का संबंध नहीं रखते थे। मुसलमानों के आगमन के पश्चात उनमें बाल विवाह, पर्दा प्रथा और दास प्रथा का तेजी से प्रचलन हुआ सल्तनत काल में हिंदुओं की दशा अत्यंत सोचनीय थी।

             तुर्क अफगान शासकों ने हिंदुओं के साथ अत्यंत अत्याचार पूर्ण व्यवहार किया। हमारे देश की इतिहास में किसी भी युग में मानव जीवन का इतना अत्याचार पूर्ण नास और कभी नहीं किया गया जितना कि तुर्क अफगान शासन के इन 320 वर्षों में किया गया।


सल्तनत कालीन सामाजिक जीवन एवं रहन सहन


1. भोजन- साधारण था हिंदू निरामिष भोजन करते थे। वे वैसा भोजन नहीं करते थे जिसमें रक्त हो। दक्षिण और मध्य भारत के हिंदू मांसाहार को घृणा की दृष्टि से देखते थे। मुसलमानों को मांसाहार भोजन बहुत ही लोकप्रिय था। पंजाब बंगाल और कश्मीर के हिंदू और राजपूत मांस एवं मछली खाते थे सूफी संतों का भोजन अत्यंत साधा था विभिन्न प्रकार के स्थानों का भी प्रचलन था। हिंदू और मुसलमान दोनों पान का प्रयोग करते थे और शराब अफीम और भांग का अत्यधिक सेवन किया करते थे। और कुरान में मादक द्रव्यों के सेवन का निषेध किया गया है। परंतु मुसलमान इसका उपयोग अत्यधिक करते थे।

           साधारण और गरीब वर्ग के हिंदू और मुसलमान दोनों को साधारण भोजन उपलब्ध था। खिचड़ी इनका लोकप्रिय भोजन था। उत्तर भारत में गेहूं और दक्षिण भारत में चावल अधिक पसंद किया जाता था सुल्तान और अमीर वर्ग के लोग सोने चांदी, शीशे और चीनी मिट्टी के बर्तन का उपयोग करते थे। परंतु फिरोज तुगलक ने सोने चांदी के बर्तनों के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया था।


2. वस्त्र आभूषण— सुल्तान अमीर और उच्च वर्ग के लोग अत्यंत भव्य और सुंदर वस्त्र धारण करते थे। यह रेशम, उनि और मखमल के वस्त्र पहनते थे। अमीर खुसरो ने सुल्तानों और अमीरों की पोशाक का उल्लेख किया है। सुल्तान सिर पर एक प्रकार की लंबी टोपी और संपूर्ण शरीर को ढकने के लिए कपड़ा पहनते थे, जिसे काबा कहते थे। दरबार में सुल्तान द्वारा दिया गया वस्त्र पहने का प्रचलन था।


3. मनोरंजन के साधन— सल्तनत काल में मनोरंजन के विभिन्न साधन प्रचलित थे।शिकार सुल्तानों अमीरों और उच्च वर्ग के लोगों के मनोरंजन का प्रमुख साधन था। सुल्तान इल्तुतमिश, बलबन, अलाउद्दीन खिलजी, मोहम्मद तुगलक और फिरोज तुगलक शिकार के बहुत शौकीन थे। बलबन शिकार के बहाने देखा था कि उसकी सेना सतर्क है या नहीं, उसे बाज पालने का शौक था। दीपालपुर सूरसूती और बदायूं में शाही शिकारग्रह थे। जहां सुल्तान शिकार के लिए जाते थे। शतरंज भी एक लोकप्रिय खेल था। मुसलमान नृत्य और संगीत के शौकीन थे। अमीर खुसरो भिन्न प्रकार के वाद्य यंत्रों का उल्लेख करता है। पुत्र जन्म और विजय के उपरांत शाही महल में बड़े धूमधाम के साथ जश्न मनाया जाता था।सुल्तान और शाही मेहमानों का नृत्य और संगीत द्वारा मनोरंजन किया जाता था।


4. मेले और त्यौहार— मुसलमान अपने त्यौहार बड़े धूमधाम से मनाते थे। भारतीय संस्कृति के प्रभाव के कारण मुस्लिम त्योहारों पर भी सजावट, रोशनी, आतिशबाजी आदि का आयोजन होता था और जुलूस निकाले जाते थे। मुहर्रम ईद उल जुहा और सब ए बारात मुसलमानों के मुख्य त्यौहार थे। मोहर्रम हजरत इमाम हुसैन की शहादत की यादगार में शोक दिवस के रुप में मनाया जाता था। ईद के 1 दिन पूर्व मोहम्मद तुगलक दरबारियों और कर्मचारियों को पोशाक वितरित करता था।

              वे अपने मेले और त्यौहारों को स्वतंत्रता पूर्वक नहीं मना सकते थे फिरोज तुगलक ने हिंदू मेलों पर भी प्रतिबंध लगा दिया था। उन्हें अपमानित और प्रताड़ित किया जाता था। उन्हें जजिया कर देने के लिए बाध्य किया जाता था। और उन्हें इस्लाम स्वीकार करने के लिए प्रलोभन दिया जाता था।


5. सामाजिक रीति रिवाज— सल्तनत काल में अमीरों को प्रतिदिन दरबार में उपस्थित होना पड़ता था। प्रत्येक दरबारी को अभिवादन और निवेदन के तौर-तरीकों का कठोरता पूर्वक पालन करना पड़ता था। बलबन पाबोस को अधिक पसंद करता था। उसने दरबारी शिष्टाचार पर विशेष जोर दिया विदेशी मंत्रियों ने विजयनगर राज्य में प्रचलित दरबारी शिष्टाचार का उल्लेख किया है। अमीरों दरबारियों और सेनापतियों को शाही फरमान लेने के लिए झुकना पड़ता था और उसे सिर से लगाना पड़ता था। तारीख-ए-दाऊदी में सुल्तान सिकंदर लोदी के शासन काल में इस शिष्टाचार के प्रचलन का वर्णन मिलता है।

           हिंदू समाज में परंपरागत 16 संस्कार प्रचलित थे। मुस्लिम समाज में नवजात शिशु के आगमन पर समारोह आयोजित करने की प्रथा थी। छठी, बिसमिल्लाह, मकतब, सुन्नत तथा खतना आदी समारोह होते थे। हिंदुओं में अंतिम संस्कार परंपरागत तरीके से मनाया जाता था। मुसलमानों के मरणासन्न व्यक्ति के समक्ष पुराण का पाठ किया जाता था।


6. विवाह प्रथा— हिंदुओं में विवाह प्रथा परंपरागत तौर तरीकों से मनाया जाता था। उन्हें मुसलमानों द्वारा कन्या के अपहरण का भय सदैव बना रहता था। और हिंदुओं में 6 या 7 वर्ष में कन्या का विवाह कर दिया जाता था, मुसलमानों ने हिंदुओं के अनेक प्रथाओं को अपना लिया था।उनमें भी बाल विवाह प्रचलित था विदेशी यात्रियों ने हिंदुओं और मुसलमानों के खर्चीली विवाह समारोह का उल्लेख किया है। हिंदू और मुसलमान दोनों में वर-वधू का चुनाव माता-पिता या बड़े बुजुर्ग द्वारा होता था। राजपूतों में स्वयंवर प्रथा भी प्रचलित थी। राजाओं ध्वनि को और उच्च वर्गीय हिंदुओं और मुसलमानों में बहुविवाह प्रचलित था साधारण था हिंदुओं में एक पत्नी विवाह प्रचलन था।


7. स्त्रियों की स्थिति— भारत में मुसलमानों के आगमन के पश्चात भारतीय नारी की स्थिति में गिरावट आयी। यह चारदीवारी की बंदी बन कर रह गई। स्वतंत्रता पूर्वक विचरण पर प्रतिबंध लगा दिया। समाज में उनका स्थान पुरुषों के स्थान से नीचे समझा जाता था। पुत्री जन्म को दु:ख और अपमान का कारण समझा जाता था। पुरुष उनके साथ दुर्व्यवहार करते थे और उन्हें अपमानित भी करते थे। वह पूर्णत: पुरुषों पर निर्धारित थीं। समाज में प्रचलित कुरीतियों के कारण उनकी दशा अत्यंत दयनीय हो गई थी वह उपभोग की वस्तु मात्र समझी जाती थी।

Comments

  1. Great 👍👍 work
    Tanks a lot sir

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    1. welcome' Have a good day.. ❤️❤️❤️❤️

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  2. Anonymous17 June, 2022

    Thank you so much 🙏🙏🙏🙏🙏❤️

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