अलंकार किसे कहते हैं? -in 2024 || ALANKAR KE BHED KYA KYA HAI

 अलंकार किसे कहते हैं-

alankar kise kahte hain in hindi
Alankar in hindi


काव्यों की सुंदरता को बढ़ाने वाले यंत्रों को ही अलंकार कहते हैं। जिस प्रकार मनुष्य अपनी सुंदरता बढ़ाने के लिए विभिन्न प्रकार के आभूषणों का प्रयोग करते हैं, ठीक उसी तरह काव्यों की सुंदरता को बढ़ाने के लिए अलंकारों का उपयोग किया जाता है।

अलंकार दो शब्दों से मिल कर बना है।
अलन+कर=अलंकार
जहां पर
अलन अर्थात भूषण और

कर अर्थात सुसज्जित करने वाला ,

अतः "काव्यों को शब्दों व दूसरे तत्वों की सहायता से सुसज्जित करने वाला ही अलंकार कहलाता है"।

अलंकार की कोई निश्चित संख्या नहीं होती है और ना ही उन्हें किसी सीमा में बांधा जा सकता है प्रतिभा के प्रकार अनंत हैं इसलिए अलंकार भी अनंत थे परंतु अलंकार के मुख्य तीन भेद हैं-

(1) शब्दालंकार
(2) अर्थालंकार
(3)उभयालंकार

(1) शब्दालंकार

परिभाषा- काव्य में जब सुंदरता तथा चमत्कार की वृद्धि जब शब्द विशेष के प्रयोग से ही होती है तब उसे शब्दालंकार करते हैं।
शब्दालंकार के भेद :-
शब्दालंकार के निम्नलिखित प्रमुख भेद हैं

1.अनुप्रास 2.यमक 3.श्लेश 4.वक्रोक्ति 5.विप्सा 6.पुनरुक्ति 7. प्रकाशमित 8. पूर्णरूक्तपदाभास। 

हम यहां केवल अनुप्रास, यमक और श्लेस का ही विवेचन करेंगे।

1. अनुप्रास अलंकार:- जहां पर स्वरों की विषमता फेरबदल होने पर भी केवल व्यंजन वर्णों का साम्य होता है वहां पर अनुप्रास अलंकार होता है।
उदाहरण :- "प्रबल प्रेम के पाले पड़कर प्रभु को नियम बदलते देखा।"
इस उदाहरण में प वर्ण की आवृत्ति स्वरों की विषमता के साथ कई बार हुई है अतः यहां पर अनुप्रास अलंकार है। 
अनुप्रास के निम्नलिखित पांच भेद हैं —
1.छेकानुप्रास
2.वृत्यानुप्रास
3.श्रृत्यानुप्रास
4.लटानुप्रास
5.अन्त्यानुप्रास

2. यमक अलंकार:— जब कोई शब्द या शब्दांश एक से अधिक बार आए हैं और प्रत्येक बार उसका अर्थ भिन्न हो तब यमक अलंकार होता है। 
उदाहरण:— सारंग में सारंग गहो, सारंग बोलो आय।
 जो सारंग मुख ते कहे , सारंग निकासो जाय।।
1.सारंग = मोर
2.सारंग = सर्प
3.सारंग = बदला।

स्पष्टीकरण:— यहां प्रथम पंक्ति में सारंग शब्द तीन बार भिन्न - भिन्न अर्थों में आया है अतः यमक अलंकार है।

3. श्लेस अलंकार :— श्लेश का अर्थ है चिपका हुआ जब एक ही शब्द में कई आज चिपके रहते हैं तब श्लेष अलंकार होता है।
उदाहरण :-चरण चरण चिंता करता, चीन्ता और सुबरन  शसुबरन को खोजत फिरत, कवि व्यभिचारी चोर।।
यहां:- चरण :- कविता का चरण , चरण :- पैर
सुबरन:- अच्छा रंग स्वर्ण।

स्पष्टीकरण:- यहां पर 'चरण' और 'सुबरन' एक बार ही प्रयुक्त हुए हैं, लेकिन उनके एक से अधिक अर्थ हैं, अतः यहां श्लेष अलंकार है।

2. अर्थालंकार

परिभाषा :- अर्थ को चमत्कृत करने वाले अर्थाश्रित अलंकार अर्थालंकार कहलाते हैं। इसका तात्पर्य यह है  कि तात्पर्य है कि यह चमत्कार निकालकर यदि इस वाक्य का केवल तात्पर्य कहा जाए तो, वाक्य बिल्कुल सादा और अरोचक हो जाएगा।

अर्थालंकार के भेद निम्नलिखित हैं-

1. उपमा- जब दो वस्तुओं में पृथकता रहते हुए कोई समानता वर्णन की जाए तब उपमा अलंकार होता है ।समानता आकृति रंग और गुण की होती है। 
      वर्णन करने में जिसकी मुख्यता हो अथवा जिसकी तुलना की जाती है उसे उपमेय कहते हैं , जिससे समता दे, उसे 'उपमान' कहते हैं जिस हेतु समानता दे उसे धर्म कहते हैं और जिस शब्द के आश्रय से समानता प्रकट करें, उसे वाचक कहते हैं। ज्यो, जैसे, जिमि, से ,सी, तुल्य, तुल, सम सदृश, सरीस आदी उपमावाचक शब्द हैं। 
       उदाहरण- बंदी कोमल से जग जननी के पा‌‍‌‌‍य।
इसमें मुख्य तात्पर्य जंग जननी के चरणों के  वर्णन मे इसलिए पा‍‍य शब्द रूप में है, कमल उपमान है, कोमल धर्म है । और से वाचक है उपमा के दो भेद हैं :- (1)पूर्णोपमा, (2) लुप्तोपमा

2. रूपक- जहां उपमेय और उपमान दोनों में एकरुपता हो जाए, रूपक अलंकार है । दूसरे शब्दों में उपमेय में उपमान के निषेध रहित आरोप को रूपक अलंकार कहते हैं ।

उदाहरण- "श्री गुरु चरण - सरोज रज, निज मन मुकुर सुधारी।
 बरनउ रघुवर बिमल जसु , जो दायक फल चारि।"
स्पष्टीकरण- यहां पर चरण सरोज मन मुकुर में एकरूपता हो जाने से रूपक अलंकार है ।
रूपक के तीन भेद हैं । (1) संगरूपक, (2)नीरंगरूपक ,(3)परम्पतिरूपक


3. उत्प्रेक्षा- जहां पर कल्पना के माध्यम से उपमेय का कोई उपमान कल्पित कर लिया जाए, वहां उत्प्रेक्षा अलंकार होता है । इसमें मनु,मानो , जनु , जानो, माहुं और जनहु वाचक शब्दों का प्रयोग होता है।

उदाहरण:—सोहत ओढ़े पीत पट, श्याम सलोने गात।
मनहुं नीलमणि सैल आतप परयौ प्रभात ।।

स्पष्टीकरण:- जहां पर श्री कृष्ण के पीतांबर ओढ़कर सोने में नीलमणि पर्वत पर प्रभात सूर्य की किरणे पढ़ने की कल्पना की गई है। अतः उत्प्रेक्षा अलंकार है|

4. संदेह :- जहां पर वस्तुओं में समानता के कारण संदेह बना रहे वहां संदेह अलंकार होता है । संदेह में अनिश्चय की अवस्था होती है।
 उदाहरण :- सारी बीच नारी है कि नारी बीच सारी है,
सारी ही की नारी है कि नारी ही की सारी है।
 स्पष्टीकरण :- यहां पर 'नारी' और 'सारी' के मध्य संदेह बना हुआ है ।
वाचक शब्द :- कि, की, धौ या अथवा किं धौ आदि।

5. अतिशयोक्ति अलंकार :-
 जहां पर किसी वस्तु का अधिक बढ़-चढ़कर वर्णन किया जाए, वहां अतिशयोक्ति अलंकार होता है ।
उदाहरण:-  हनुमान की पूंछ में लग न पाई आग।
 लंका सारी जल गई गये निशाचर भाग ।।
स्पष्टीकरण:-  "हनुमान की पूंछ में आग ना लगने पर लंका जल गई" यहां वर्णन बढ़ा चढ़ाकर किया गया है। अतः यहां अतिशयोक्ति अलंकार होता है।

6. दृष्टांत अलंकार:- जहां उपमेय और उपमान के पृथक-पृथक धर्म हो लेकिन उसमें बिंब प्रतिबिंब भाव हो, वहां दृष्टांत अलंकार होता है।  इसमें वाचक शब्द व्यक्त नहीं होता है।
 उदाहरण:-  पगी प्रेम नंदलाल के, हमें न भावत जोग।
 मधुर ! राजपथ पायकें भीख न मांगत लोग ।।
स्पष्टीकरण:- इस उदाहरण में उपमेय और उपमान के अलग-अलग धर्म हैं तथा उनमें बिंब-प्रतिबिंब भाव है ।वाचक शब्द लुप्त है। अतः यहां पर दृष्टांत अलंकार है।

7. समासोक्ति अलंकार:-
जहां विश्लेषण के आधार पर उपमेय रूप ध्वनित होता है और दोनों अर्थो की परीणती उपमा में होती है, यहां समासोक्ति अलंकार होता है ।
उदाहरण:-  चंद्रमा ने रात्रि की रजनी मुख इस प्रकार चुंबित किया कि उसके अंधकार रूपी वस्त्र अति अनुराग के कारण कब गल गए उसे पता भी न चला।
 इस उदाहरण में 'अति अनुराग के कारण' विशेषण है।

8. अन्योक्ति अलंकार:- जहां पर प्रस्तुत (उपस्थित न रहने वाली) के द्वारा उपस्थित रहने वाली वस्तुओं की प्रशंसा की जाए वहां पर प्रस्तुत प्रशंसा या नियुक्ति अलंकार होता है। अर्थात बात जब ठीक प्रकार से न कह कर अन्य विधि से कही जाए बात पूर्ण रूप से स्पष्ट हो जाए।
 उदाहरण:- नहिं पराग नहिं मधुर मधु , नहिं विकास एहि काल।
 अली कली ही सो विन्ध्यो, आगे कौन हबाल ।।
स्पष्टीकरण:- यहां पर आप्रस्तुत (भ्रमण) के माध्यम से प्रस्तुत (राजा जयसिंह के संबंध में कथन है)।

9. विरोधाभास अलंकार :- जहां पर वर्णन में उत्कृष्टता लाने के लिए विरोधी पदार्थों गुणों क्रिया का वर्णन किया जाए वहां पर विरोधाभास अलंकार होता है, अर्थात वर्णन में जहां विरोधा सा प्रतीत हो परंतु वास्तव में विरोध न हो ।
उदाहरण:- या अनुरागी चित्त की, गति समझे ना ही कोय।
ज्यों-ज्यों बूढ़े श्याम रंग , त्यों त्यों उज्जवल होय ।।
स्पष्टीकरण:- श्याम रंग में डूबने पर 'उज्जवल होना' इस कथन की विरोध सा प्रतीत होता है, परंतु वास्तव में विरोधी नहीं है , क्योंकि श्री कृष्ण के प्रेम में डूबने पर मन उज्जवल हो जाता है।

 3. उभया अलंकार

 परिभाषा:-  जो अलंकार शब्द और अर्थ दोनों के आश्रित रहकर दोनों को चमत्कृत करते हैं वह उभया अलंकार कहे। जाते हैं अर्थात एक से अधिक अलंकारों के सम्मिलन को उभयालंकार कहते हैं।

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