असहयोग आंदोलन प्रारंभ होने के कारण
Asahyog andolan |
asahyog andolan kab shuru hua tha.
यह आंदोलन 1920 से 1922 तक चला था।
1920 में लोकमान्य तिलक की मृत्यु के बाद राष्ट्रीय आंदोलन का नेतृत्व गांधी के हाथ में आ गया महात्मा गांधी से पूर्व यह आंदोलन केवल एक शिक्षित लोगों तक सीमित था किंतु जैसे ही राष्ट्रीय आंदोलन की बागडोर उनके हाथ में आई उन्होंने अपने प्रयासों से उसे वास्तविक अर्थ में जन आंदोलन में परिवर्तित कर दिया गांधीजी रक्त पाठ में कभी भी विश्वास नहीं करते थे उन्होंने आंदोलन को पूर्णतया अहिंसा पर आधारित करके चलाया परंतु फिर भी हिंसा की छुट-मूट की घटनाएं यत्र तत्र प्राप्त होती रही।असहयोग आंदोलन (ASAHYOG ANDOLAN) (1920-1922)
प्रथम विश्वयुद्ध के समय में महात्मा गांधी ने ब्रिटिश सरकार से सहयोगी के रूप में भारत की राजनीति में प्रवेश किया था। प्रथम विश्वयुद्ध में विस्फोट के समय अंग्रेजी सरकार ने भारत की जनता से सहयोग का आवाहन किया था और भारतवासियों ने तन मन धन से उनका सहयोग किया और अंग्रेज सरकार ने गांधी को केसर ए हिंद की उपाधि से विभूषित किया।
भारत की राजनीति में आने से पूर्व गांधीजी को एक सत्यग्राही के रूप में दक्षिण अफ्रीका में सफलता मिल चुकी थी 1915 ई. में अहमदाबाद जेल के समीप साबरमती में उन्होंने एक आश्रम की व्यवस्था की और उसके पश्चात 1920 ई. में सहयोगी गांधी से आशा योगी गांधी बन गए और उन्होंने ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध आंदोलन प्रारंभ कर दिया।
असहयोग आंदोलन (asahyog aandolan) की पृष्ठभूमि या कारण
प्रथम विश्वयुद्ध या महायुद्ध तक गांधी को ब्रिटिश सरकार की ईमानदारी और न्यायप्रियता में पूरा विश्वास था। इसलिए उन्होंने युद्ध में भारत की जनता से सहयोग की अपील की थी किंतु महायुद्ध के तुरंत बाद कुछ ऐसी घटनाएं घटित हुई जिनके कारण सरकार की ईमानदारी से गांधीजी का विश्वास उठ गया और उन्होंने अंग्रेजी सरकार के विरुद्ध अहिंसात्मक संघर्ष की घोषणा की वास्तव में ब्रिटिश राज भक्ति में अटूट विश्वास करने वाले गांधी जैसे गंभीर राजनीतिज्ञ द्वारा सरकार के विरुद्ध असहयोग आंदोलन का आवाहन करना एक आश्चर्यजनक घटना थी जिसके लिए निम्नलिखित घटनाएं उत्तरदायी थीं --
थॉमस और गैरेट ने लिखा है —" अमृतसर की दुर्घटना भारत की इंग्लैंड के संबंधों के इतिहास में एक क्रांतिकारी घटना थी यह लगभग वैसी ही थी जैसे 1857 का विद्रोह था।"
इस हत्याकांड की जांच हेतु नियुक्त हण्टर कमीशन द्वारा डायर को निर्दोष घोषित किए जाने के फलस्वरुप गांधीजी के विचार पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा और उनका अंग्रेजी सरकार के प्रति दृष्टिकोण बदल गया।
कांग्रेस की नीति में परिवर्तन — प्रारंभ में अंग्रेजी सरकार के समर्थक गांधीजी ने कोलकाता अधिवेशन में असहयोग का प्रस्ताव प्रस्तुत करने हुए कहा, " अंग्रेज सरकार शैतान है इसकी साथ सहयोग संभव नहीं उसे अपनी भूलों पर कोई दु:ख नहीं है अतः हमें अपनी मांगों के लिए प्रगतिशील अहिंसात्मक असहयोग की नीति अपनानी होगी।"
यह प्रस्ताव बहुमत से पारित हो गया और नागपुर अधिवेशन में इसे पूरी मान्यता मिल गई नागपुर अधिवेशन के संबंध में पट्टाभिसीतारमैया ने लिखा है," नागपुर कांग्रेस से भारत के इतिहास में एक नये युग का प्रारंभ हुआ कमजोर और आग्रहपूर्ण प्रार्थना का स्थान उत्तरदायित्व और स्वावलंबन की नई भावनाओं ने ले लिया।"
असहयोग आंदोलन का कार्यक्रम
यह आंदोलन इससे पूर्व होने वाले आंदोलनो से भिन्न था। इसके कार्यक्रम के दो भाग थे प्रथम में बहिष्कार संबंधी घोषणा थी और दूसरे में उनसे उत्पन्न समस्याओं का समाधान कुल मिलाकर यह चौदाह सूत्रीय कार्यक्रम था।
1. समस्त उपाधियों व सरकारी पदों का परित्याग।
4. सरकारी न्यायालय का बहिष्कार।
5. मेसोपोटामिया में भर्ती सैनिकों के संबंध में अपनाई गई सरकाई नीति का बहिष्कार।
6. 1919 के अधिनियम का विरोध।
7. सभी विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार।
8. राष्ट्रीय विद्यालयों की स्थापना।
9. न्याय पंचायतों की स्थापना।
10. हाथ कर घात था कुटीर उद्योग का विकास।
11. स्वदेशी वस्तु के प्रयोग का प्रचार।
12. सांप्रदायिक एकता की भावना का विकास।
13. छुआछूत एवं जाती हे भेदभाव का अंत।
14. संपूर्ण देश में अहिंसा का पालन करना।
असहयोग आंदोलन की प्रगति
1921 ई में गांधीजी द्वारा केसर ए हिन्द की उपाधि के त्यागने के साथ ही इस आंदोलन का आरंभ हुआ उसका अनुसरण करते हुए वकीलों सरकारी अफसरों और विद्यार्थियों आसमान जनता सबने बहिष्कार आंदोलन को अपना लिया 1921 की सरकार के लिए सिरदर्द और जनता के लिए उत्साह जनक सिद्ध हुई। सरकार ने आंदोलन को कुचल ने के लिए दमन का सहारा लिया और अनेक कार्यकर्ता को गिरफ्तार कर लिया परंतु इससे आंदोलन और भी तीव्र हो गया।
पंडित जवाहरलाल नेहरु ने अपनी आत्मकथा में लिखा है —" देश के नवयुवक पुलिस की गाड़ियों में बैठकर जाते थे और उतरने से इंकार कर देते थे उसको देखकर पुलिस व जिलाधिकारी परेशान थे।"
17 नवम्बर 1921 को प्रिंस ऑफ वेल के भारत आने पर सरकार के अनुमान के विरुद्ध जनता ने उन्हें काले झंडे दिखाए और देशव्यपी हड़ताल का आयोजन किया गया। दिसंबर 1921 ईं. तक लगभग 60,000 व्यक्तियों के बंदी बनाएं जाने के बाद अहमदाबाद अधिवेशन में गांधीजी को सविनय अवज्ञा आंदोलन चलाने का अधिकार भी दे दिया गया।
चौरा चौरी कांड
इससे पूर्व की गांधीजी सविनय अवज्ञा आंदोलन को प्रारंभ करते 5 फरवरी 1922 को गोरखपुर जिले के चौरी चौरा नामक स्थान पर सत्यग्राहियों और पुलिस के मध्य मुठभेड़ हो गई क्रोधित भीड़ ने थाने में आग लगा दी जिसमें 24 सिपाही जीवित जल गए यह घटना गांधीजी के अहिंसात्मक आंदोलन के विरुद्ध थी। अतः उन्होंने 22 फरवरी 1922 को असहयोग आंदोलन को स्थगित करने की घोषणा की।
असहयोग आंदोलन का महत्व
असहयोग आंदोलन को स्थगित करने का देशव्यपी विरोध हुआ जेल में बंद नेता मोतीलाल नेहरु और लाला लाजपत राय ने गांधी के इस निर्णय को गलत बताया और सुभाष चंद्र बोस ने कहा उस समय जबकि देश की जनता का उत्साह चरम सीमा पर था मैदान छोड़ने का आदेश देना दुर्भाग्यपूर्ण कदम था आंदोलन के स्थगित होने के बाद जनता का विश्वास टूट गया और इसकी कई कमजोरियां दिखाई देने लगी।
निसंदेह असहयोग आंदोलन देश की स्वतंत्रता की दिशा में प्रथम युग परिवर्तनकारी कदम था जो सत्य प्रेम और अहिंसा पर आधारित था। इस आंदोलन में पहली बार जनसाधारण में साहस और त्याग की भावना दिखाई पड़ी इस आंदोलन के फलस्वरुप जनता के प्रत्येक व्यक्ति के हृदय में राष्ट्रीयता की भावना मजबूत हुई। इसलिए सुभाष चंद्र बोस ने आंदोलन के स्थगित किए जाने पर गांधीजी की आलोचना करते हुए लिखा था, — "निसंदेह गांधीजी ने कांग्रेस को एक नया मार्ग दिखाया। देश के कोने कोने में एक जैसे नारे लगाए गए और प्रत्येक स्थान पर समान विचारधारा दिखाई देने लगी अंग्रेजी भाषा का महत्व कम हुआ क्योंकि कांग्रेस ने हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में स्वीकार कर लिया।"
गांधीजी के असहयोग आंदोलन के महत्व स्पष्ट करते हुए कूपलैण्ड ने लिखा है—" गांधी जी ने जो कार्य किया वह बाल गंगाधर तिलक भी न कर सके थे। उन्होंने देश की जनता को स्वतंत्रता के लक्ष्य की ओर बढ़ाना सिखाया और उसके लिए राष्ट्रीय आंदोलन को वैधानिक दबाओ वाद - विवाद और समझौते के मार्ग से हटा कर हिंसा के पवित्र संदेश के द्वारा आगे बढ़ाया।"
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