विजय नगर साम्राज्य की स्थापना कब हुई


विजय नगर साम्राज्य
विजय नगर साम्राज्या


       विजय नगर सामराज्या की स्थापना दक्षिणी भारत में तुंगभद्र नदी के किनारे सन 1336 ई. मे संगम के पांच पुत्रो में से हरिहर तथा बुक्का दोनों ने की थी। ये दोनों होयसल राज्य के नरेश वीरबलाल तृतीय के यहां नौकर थे, नरेश की मृत्यु के बाद होयसल के राज्य पर इनका अधिकार हो गया उन्होंने तुंगभद्र नदी के दक्षिण में स्थित विजय नगर को अपनी राजधानी बनाया  उत्तर भारत के मुस्लिम शासकों की धर्माधंता तथा आसहिष्णुता की नीति का परिणाम था

संगम वंश का शासन काल :-

शासक                   शासनकाल

हरिहर प्रथम (1336-1356 ई. तक )
बुक्का प्रथम (1356-1377 ई.तक )
हरिहर द्वितीय (1377-1404 ई. तक )
विरुपाक्ष प्रथम (1404 ई.तक )
बुक्का द्वितीय (1404-1406 ई. तक )
देवराय प्रथम (1406-1422 ई. तक )
देवराय द्वितीय (1422-1446 ई.तक )
विजयराय द्वितीय (1446-1447 ई. तक )
मल्लिकार्जुन (1447-1465 ई. तक )
विरुपाक्ष द्वितीय (1465-1485 ई. तक )

विजय नगर की आर्थिक जीवन - 


विजय नगर साम्राज्य के निवासियों का प्रमुख व्यवसाय कृषि था कृषि हेतु सिंचाई का समुचित प्रबंध था। फलतः कृषक वर्ग समृद्ध थे समाज का कुछ वर्ग समृद्ध था जिससे उनका जीवन विलासमय हो गया था

सामाजिक जीवन -

1. स्त्रियों की दशा - विजय नगर सामराज्य में स्त्रियां सम्मानित थी वह राजनैतिक सामाजिक कथा सांस्कृतिक कार्यों में भाग लेते थे वह पुरुषों की तरह कार्य भी करती थी बाल विवाह तथा सती प्रथा प्रचलित थी

2. विषमता - समाज में विषमता व्याप्त थी कुछ बहुत धनी तथा कुछ बहुत गरीब थे समाज का एक वर्ग निरंतर संपन्न होता जा रहा था तो दूसरा वर्ग निरंतर निर्धन को रहा था

3. खानपान - ब्राहमण सकारी थे खाद्य पदार्थों में तेल मांस फल तथा सब्जियों का प्रयोग होता था

4. ब्राह्मणों की श्रेष्ठता - समाज में ब्राहमण सम्मानित थे धार्मिक तथा सामाजिक कार्य में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका होती थी उनका प्रमुख कार्य अध्ययन और अध्यापन था उन्हें जीविका की कोई चिंता नहीं थी



विजय नगर सामराज्या के पतन के कारण



1. शासकों की निरंकुशता - विजय नगर सामराज्या में कृष्ण देव राय जैसे उदार तथा सुधार वादी शासक को छोड़कर अधिकांश शासक निरंकुश तथा स्वेच्छाचारी थे। जिससे प्रजा में असंतोष बहुत बढ़ गया था।

2. अयोग्य उत्तराधिकारी - कृष्णा देवराय के बाद विजय नगर सामराज्या में कोई भी शासक योग्य अनुभवी नहीं था इन अयोग्य शासकों की कमजोरी से विजय नगर में भी युद्ध छिड़ गया। गुटबाजी दिन प्रतिदिन बढ़ती गई और साम्राज्य का पतन निश्चित हो गया।

3. बहमनी राज्य से संघर्ष - विजय नगर साम्राज्या के शासकों एवं बहमनी साम्राज्य के शासकों के बीच अनेक छोटे बड़े युद्ध हुए जिससे साम्राज्य कमजोर होता गया।

4. तालीकोट का युद्ध - विजय नगर साम्राज्या के विरुद्ध दक्षिण भारत के समस्त मुस्लिम शासकों ने संयुक्त कार्यवाही कर  सन 1565 में तालीकोट नामक स्थान पर पराजित किया। 

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